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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा प्राचीन प्रतिमाओं के द्वारा जैन धर्म की प्राचीनता और जैनागमों की भी प्राचीनता - उसका तीर्थंकर - गणधरों से संबंध सिद्ध होता है । जैनागमो में अनेक स्थान पर शाश्वत-अशाश्वत जिनप्रतिमाओं की बातें, मूर्तिपूजा की बातें आती हैं, उसकी सिद्धि भी प्राचीन प्रतिमाओं से होती हैं । उससे भी आगमों की प्रामाणिकता, उपादेयता की श्रद्धा बढ़ती है । इतना बड़ा महत्व प्राचीन प्रतिमाओं का होने पर भी जैसे कोई सामने दिख रहे सूर्य का अपलाप करता है, वैसे डोशीजी " इसका कोई मूल्य नही" कहकर प्रत्यक्ष अपलाप करते हैं I १६४ वर्तमान में स्थानकवासी मान रहे ३२ सूत्रों में श्रावकों के आचार का विधानात्मक निरूपण जिसमें है, ऐसा एक भी आगम नही हैं । तो " आचारविधान को बताने वाले सूत्र के सूत्र मौजूद है" ऐसा डोशीजी का कथन कितना सत्य है ? ‘मूर्तिपूजा' श्रावक का कर्तव्य है उसके आचार निरूपक एक भी आगम नहीं है, ऐसा कहना बराबर नहीं है चूँकि १२ व्रतों का विस्तार से निरूपण भी उनके हिसाब से तो चरितानुवाद ग्रंथो में ही मिलता हैं उसका विधि-सूत्र तो है ही नही, तो भी उसे विधानरूप में मानना, आचरण में लाना और मूर्तिपूजा की बात आए तब चरितानुवाद कहकर उसे अप्रमाण कोटी में गिनना यह अभिनिवेशग्रस्त मतमोह ही है न ? १४ पूर्वी भद्रबाहु स्वामी द्वारा रचित ओघनियुक्ति शास्त्र में साधु को चैत्यवंदन बताया ही है। भगवतीजी मे चारण मुनियों की यात्रा भी बतायी है । साधु का अधिकार दर्शन - वंदन तक ही है । अत: साधु साध्वीजी के लिये इतनी ही बात आती है । आगे डोशीजी कहते है "अनेक श्रमणोपासकों के जीवन इतिहास लिखे हुए हैं उन सब में से किसी एक में भी मूर्तिपूजक ने, मंदिर बनाने ... बिंदु विसर्ग तक नही है" पक्षपात का काला चश्मा लगाने पर होते हुए भी वह दिखनेवाला नही हैं। श्रावकों के जीवन इतिहास की बात मूलसूत्रों की अपेक्षा से करते हो तो आनंद आदि श्रावक, अंबड आदि सबमें जिनप्रतिमा के सिवाय अन्य का दर्शन-पूजन नहीं करना स्पष्ट ही है, जिससे जिनप्रतिमा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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