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________________ १६२ - जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा ___आगे नं ५ का प्रमाण भी थोथला हैं, ज्ञानसुंदरजी के मथुरा के कंकाली टीलों की तीन प्रतिमाओं के परिचय में भगवान् महावीर की आमलकी क्रीड़ा बतायी है। साराभाई नवाब ने उसका खंडन किया उसमें प्रतिमाओं के लेख का संबंध ही क्या है ? साराभाई नवाब के हिसाब से उस स्थापत्य की अलग कल्पना हुई होगी तो भी वह जिनमंदिर-मूर्ति संबंधी स्थापत्य ही है उसी को सिद्ध किया है। (३) प्राचीन होने मात्र से उपादेय नहीं → समीक्षा - इस प्रकरण में डोशीजी ने अनेक निष्फल कुतर्क किये हैं । दूसरा कोई तर्क नहीं मिला इसलिए मिथ्यात्व हिंसादि दोष प्राचीन अनादि हैं, जिससे उपादेय नहीं हो सकते, यह कुतर्क दिया, यह तो सामान्य पुरूष भी जानता है । दोष तो प्राचीन-अर्वाचीन तीनों काल में हेय ही हैं, उपादेय होते ही नहीं हैं । स्वरूप से ही हेय वस्तु उपादेय कैसे हो सकेगी ? आगे कह रहे हैं "विवेकी और सुज्ञ जनता केवल हेय-उपादेय को ही देखती हैं नये पुराने को नहीं ।" यह बात ठीक हैं, परंतु अनेक वस्तुओं की प्राचीनता वस्तु की उपादेयता में कारण बनती हैं । इतिहास, मूर्तियाँ, धर्म, धर्मशास्त्र ये सब प्राचीन ही उपादेय बनते हैं, उनकी विशेष कीमत होती है । वह सुज्ञ-विद्वद्-वर्ग में प्रसिद्ध हैं । इसीलिये खुद डोशीजी भी पाठ की परीक्षा के लिये प्राचीन प्रतियों को ही ढूंढते है, उन्हीं का उदाहरण देते है, जैसे औपपातिक-आनंद श्रावक में अगर प्राचीनता की कोई कीमत न होती तो प्राचीन प्रति की तलाश क्यों करते ? उपरोक्त मूर्तियाँ-शास्त्र इत्यादि जितने प्राचीन होंगे उतने परमात्मागणधरों के निकट कालीन होने से उनकी उपादेयता बढ़ जाती है। यह सर्वसुज्ञजनों को मान्य है। इसको भी डोशीजी छुपाना चाहते है। आगे लिखते है "हमारी दृष्टि से यह समाज (स्थानकवासी) अधिक प्राचीन नहीं दिखाई दे किन्तु इसकी मान्यता, श्रद्धा, उपदेश आदि भगवान् महावीर की आज्ञानुसार है । अतः यह प्राचीन है।" इसमें प्रथम तो परमात्मा के शास्त्र भगवती सूत्र में प्रभु शासन २१००० वर्ष अविच्छिन्न चलेगा, ऐसा बताया है । तो नये-नये निकले पंथ में प्रभु आज्ञा कैसे संभव है ? मान्यता-श्रद्धा-उपदेशादि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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