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________________ १३४ — जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा २०. कथाओं के उदाहरण → समीक्षा : आभिनिवेशिक डोशीजी जब आगम द्वारा मूर्ति-मूर्तिपूजा की सिद्धि होती हो तब अपनी मान्यता को बाधा पहुँचती जानकर चरितानुवाद-कथा आदि विधिवाद नहीं हो सकती वगैरह बताकर ऐसा भ्रम खड़ा कर देते हैं मानों वे सब अप्रमाण हो । उसमें आती मूर्तिपूजा संबंधी बातों को अप्रमाण दूसरों के लिये अकरणीय बताते हैं । इससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है डोशीजी के मन में यही बैठा है कि जिन प्रतिमा की पूजा द्रौपदी ने की और नमुत्थुणं बोला, तभी तो उन्हें चरित्तानुवाद की ओट लेकर मूर्ति-मूर्तिपूजा का खंडन करना पडता है। अगर कामदेव मूर्ति, नमुत्थुणं प्रक्षेप का खुद के मन से विश्वास होता तो मान्य आगमों को चरितानुवाद (केवल कथानक) मानने तक नही पहुँचते । कितने भी कुतर्क करने पर भी, खुद को तो पता ही होता है कि मैं कुतर्क कर रहा हूँ, वस्तुस्थिति और ही है। और किसी भी हालत में अपने पक्ष की सिद्धि तो करनी है अतः चरित्तानुवाद तक पहुंचना पड़ता है। अब डोशीजी में ठूस-ठूसकर भरा हुआ दृष्टिराग बहार निकल रहा है, इसे देखिये इनकी पुस्तक के प्रकरण ३३ में 'मूर्तियों के सभी लेख सच्चे नहीं हैं' प्रकरण में मूर्ति-मूर्तिपूजक-मूर्तिपूजक साधुओं को बदनाम करने के इरादे से ५ उदाहरण दिये हैं, उसमें से प्रथम तीन उदाहरण चरितानुवाद कोटी में आयेंगे या नहीं ? आयेंगे ही क्योंकि ऐसे धतींग अगर कोई कर ले उससे वे सार्वत्रिक-सभी ऐसे करते हैं, करेंगे, ऐसा नहीं माना जाता । स्थानकवासी समाज में भी धतींग के किस्से होते हैं उससे स्थानकवासी संत सभी उस कोटी में नही गिने जाते यहाँ खुद भी अपनी सिद्धि के लिये चरितानुवाद के उदाहरण देते हैं, तब ये उनके शब्द "मतभेद और आचार विचार के मामलों में कथाओं की ओट लेनेवाले जनता को उन्मार्ग की ओर धकेलने और द्वेष फैलाने वाले भयङ्कर जन्तु हैं ।'' उनको खुद को ही लागू पडेंगे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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