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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
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के व्याख्याकारों द्वारा अपने व्याख्या ग्रन्थो में अवतरित पाठ तथा कहीं कहीं समर्पण सूत्रो के पाठ औपपातिक के स्वीकृत पाठ में नहीं मिलते हैं । वे पाठ वाचनान्तर में प्राप्त हैं ।"
मूल आगमों में बताये समर्पणसूत्रों के पाठ औपपातिक मूल में न मिलकर औपपातिक के वाचनान्तर में मिलते हैं । यह उपर स्पष्ट बताया
। इससे सिद्ध होता है कि वाचनान्तर को भी मूल सूत्र के समान ही प्रमाण करना होगा । अगर ऐसा नहीं करो तो आपको मूल सूत्र को ही अप्रमाण मानने की आपत्ती आएगी ।
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