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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा १२७ लग्न प्रसंग में मूर्तिपूजा का कारण - इसमें डोशीजी द्वारा बताई बातें अज्ञानी-अथवा मिथ्यादृष्टि जीवो में लागू होती है। सम्यग्दृष्टि तो व्यवहार में भी मिथ्यात्वी देवों को नही मानेगा, नहीं पूजेगा। सम्यक्त्व आलावे में 'अन्नउत्थियदेवयाणि' से यह बात सूत्र सिद्ध है। और द्रौपदी तो सम्यग्दृष्टि थी नारद को नमस्कार नहीं किया, नमुत्थुणं का पाठ आदि से यह अच्छी तरह सिद्ध होता है । ऊपर भी सिद्ध कर ही दिया है। अतः शादी के वक्त द्रौपदी ने जिनप्रतिमाओं की ही पूजा की थी यह भी सिद्ध है। क्या द्रौपदी ने नमुत्थुणं से स्तुति की थी ? इसमें डोशीजी को नमुत्थुणं को असिद्ध करने का कोई भी कुतर्क नही मिलने पर संप्रदायअभिनिवेश से यतियों पर सूत्रपाठ परिवर्तन का आक्षेप कोई भी प्रमाण दिये बिना लगा रहे हैं । उसे कौन सुज्ञ मानेंगे ? मेझरनामा ढाल २२ में अजितशांति - वंदितु इत्यादि में गाथा जोडने की बात की है, वह उस स्तोत्र की महिमा बढ़ाने हेतु किसीने जोडी है । उससे स्तोत्रादि में विरोध नहीं आता है । प्राचीन हस्तप्रतें देखने से उसका ख्याल भी आ जाता है। परंतु मूल आगम में काँट-छाँट तो स्थानकवासी संतो को छोडकर किसीने की हो उसका कोई प्रमाण नहीं है । लोंकाशाह के पूर्व तो मूर्तिपूजा का विरोध ही नहीं था समग्र जैन समाज एकरुपता से मूर्तिपूजा करता था, तो आगम में परिवर्तन का प्रश्न ही कहाँ रहता है ? ज्ञातासूत्र में नमुत्थुणं की बात करीब-करीब प्राचीन सभी प्रतियों में आती हैं देखिए (१) खंभात-ताडपत्रीय लेखन संवत् ११८४ (२) संभात ले.सं. १३०७ (३) खंभात ले.सं. १२९५ (४) जैसलमेर-ताडपत्रीय जिनभद्रसूरि भंडार । १३वीं शताब्दी (५) जैसलमेर - ले.सं. १५मी शताब्दी (६) जेसलमेर ले.सं. १२०१ . (७) लींबडी ताडपत्रीय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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