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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
१२३ मंदिर-मूति से कितना द्वेष-वैर है इसका यह स्पष्ट नमूना है ।
आगे 'तस्स ठाणस्स अणालोइय' कहा हैं उसका अर्थ डोशीजी ने बताया नहीं है । उस स्थान की याने किस स्थान की ? ऐसे प्रयोग अनेक स्थल पर भगवतीजी मे आये हैं । उदाहरण के तौर पर शतक ३ उद्देशा ४ मे "मायीणं तस्स ठाणस्स अणालोइय" इसी प्रकार ५ वें उद्देशे में भी प्रयोग हैं । टीका मे वहाँ पर प्रकरणोचित 'विकुर्वणालक्षण-स्थानात्' अर्थ किया है । यहाँ पर प्रकरण पर से लब्धि का उपयोग करना प्रमाद है अतः चारणलब्धि का उपयोग करने से चारणमुनियों ने जो प्रमाद का सेवन किया, उसका प्रायश्चित करना जरूरी है, प्रायश्चित किए बिना मृत्यु होने पर अनाराधक बताये हैं । तीर्थ यात्रा के कारण अनाराधक नहीं बताये हैं ।
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