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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा १७. तुंगिका के श्रमणोपासक समीक्षा इसका जवाब प. पू. लब्धिसूरिजी म. ने दिया हैं, वह उन्हीं के शब्दों मे- “तुंगिया नगरी के श्रावकों का अधिकार भगवतीजी सूत्र के दूसरे शतक में आता है । ११९ इसमें ‘“कयबलि कम्मा" शब्द का अर्थ किया है पूजना जिन्होंने, इससे प्रभु की मूर्तिओं की पूजा करने वाले सिद्ध होते हैं यह बात रतनलालजी को ठीक नही लगती, क्योंकि उनके लिये 'पूजा' शब्द दिल दुःखानेवाला हो जाता है। पूजा शब्द देखा कि ढूंढियों का दिल धूजा, यह बात अक्षरश: रतनलालजी सिद्ध करते हैं । हमारे परम गुरुदेव श्रीमद् विजयान्दसूरीश्वरजी महाराज ने तुंगीया नगरी के श्रावकों की बड़ी मजबूती बताकर लिखा की उन्होंने अपने-अपने गृहों में रही हुई जिनमूर्तिओं का पूजन किया हैं, तब रतनलालजी गोत्रदेव आदि की पूजा की ऐसे ठहराते हैं, हमको बडा अफसोस हैं कि ये लोग ऐसी नीच दशा पर क्यों जाते हैं ! गोत्रदेव की पूजा कर ले तो इनको खुशी होती है और तीन लोक के नाथ जिनराज की पूजा से नाराजगी होती है । बस, इस सारे ही प्रकरण से इसी बात पर वजन दिया है । अन्य देवताओं की पूजा सिद्ध हो और जिनराज की पूजा की असिद्धि हो... हाय ! हाय ! जिनके शासन में रहना उन्हीं की मूर्तिपूजा का द्रोह? कैसा जुल । नूरी जमालीये पामर की पूजा करो, हरकत नही, खबरदार ! जिनराज का नाम नहीं लेना । आह भले मनुष्यों ! तब तो तुम को भी कहा जाता है की, नरक तिर्यग् गति सिवाय और गति में जाने का नाम मत लेना और लेना हो तो प्रभु पूजा में दिल देना । भरतचक्रवर्ती आदि चक्री, वासुदेव और रावण आदि प्रतिवासुदेव का हिसाब अलग था और तुंगीया नगरी के श्रावक का हिसाब अलग था । कोई भी हमारा साधु कुत्सित देवी देवताओ को नही मानता नाहक गप्प मत लगावो ।" ( मूर्तिमंडन पृ. १३२) वर्तमान में भी स्नान से पवित्र होने के बाद ब्राह्मण वगैरह अनेक कुलों में, घर में अंदर देवस्थान, स्थापना, फोटो आदि होते हैं उनका यथा शक्य प्रक्षाल - पूजा, धूप-दीप आदि करते हैं, कहीं पर सूर्य के सामने जलधारा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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