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________________ १०८ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा रटन करनेवाले स्थानकवासी समाज की असलीयत बाहर आ गई " निंदामि च पिबामि च'' कहावत का अनुसरण स्पष्ट दिखाई दिया। श्री दशवैकालिक सूत्र में स्त्री की प्रतिकृति भी देखने की साधु को मनाई कर स्थापना निक्षेप के शुभाशुभ प्रभाव को स्पष्ट रुप से प्रतिपादित किया गया है । 1 आगे डोशीजी कहते है “हम भी मूर्ति को वंदन नमस्कार नहीं करते हैं, उसी प्रकार अपमान भी नहीं करते हैं ।" यह कथन सत्य से परे है जिस प्रतिमा को अनेक भक्तहृदय परमात्मस्वरूप मानते हैं, पूज्य मानते हैं उसके लिये पृ. ९५ पर आप लिखते हैं " जिससे बेचारी मूर्ति को ताले मे बन्द रहना पडता है" यह शब्द अपमानजनक द्वेष जनक है या नहीं ? इस प्रकार आपकी पुस्तक में अनेक जगह पर मूर्ति - मूर्तिपूजकों पर अपमान जनक द्वेष जनक प्रयोग हुए हैं । डोशीजी ने अपनी पुस्तक में तर्कों की खोज कम और मात्र मूर्ति एवं मूर्तिपूजकों की निंदा से पन्ने भरे हैं । जिससे आपकी कथनी एवं करणी का अंतर स्पष्ट दिखाई देता है । 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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