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________________ १०४ - जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा शकेंद्र से लडाई का सोचता है- फिर शरण का सोचता है अवधिज्ञान से भगवान् महावीर को काउस्सग ध्यान में देखता है । उस वक्त तक भी यह भगवान् महावीर को साधारण महात्मा जैसा ही समझता हैं, न तो वह तीर्थंकर प्रभु के बारे में कुछ जानता है न उसको तीर्थंकरत्व के प्रति कोई श्रद्धा या भक्ति है । तीर्थंकर के प्रति कोई जानकारी न होने से उनके सिद्धांत के बारे में तीर्थंकर प्रभु की प्रतिमा के प्रभाव के बारे में सर्वथा अनजान है । तो वह सौधर्म देवलोक की शाश्वत प्रतिमा के शरण में कैसे जा सकता है ? ___आगे डोशीजी ने अंतर में भरे द्वेष के विषोद्धार स्वरुप 'मूर्ति स्वयं अपना ही रक्षण नही कर सकती, बेचारी को ताले में बंद रहना पडता है आदि पिटी-पिटाई बातों का पुनरावर्तन किया है । उसका जवाब-चमरेंद्र ने जिनका शरण स्वीकार किया उन तीर्थंकर प्रभु को कानों में कीले ठोकने, पावों में खीर पकाना वगैरे अनेकानेक उपसर्ग छद्मस्थ अवस्था में हुए तो क्या वे शरणयोग्य नही बने ? उनके शरण में चमरेंद्र गया वह तो सूत्र ही बता रहे हैं । तो ऐसे कुतर्क देकर भोले लोगों को क्यों भ्रमित किया जाता है ? अत: यह सिद्ध होता है कि छद्मस्थ जिन खुद की रक्षा भले न करे फिर भी उनके अचिन्त्य प्रभाव से शरण स्वीकारने वालों को शरण प्राप्त होती ही है, वैसे ही जिनप्रतिमाओं में समझना । जैसे आगम का पुस्तक, स्वयं अशरण है, ताले आदि में रखा जाता है, फिर भी प्रबुद्ध-सम्यग्दृष्टि ज्ञानी को सच्चा ज्ञान देता ही है। डोशीजी कुतर्क खुद करते है और "चोर कोटवाल को डांटे' की नीति अपनाकर ज्ञानसुंदरजी के ऊपर दोषारोपण कर रहे है । ३३ आशातना में अरिहंत प्रतिमा अरिहंत में ही आएगी यह उत्तर खुद ने पीछे दे दिया है और खुद ही प्रश्न पूछ रहे है ? पीछे अरिहंत शब्द में ही मूर्ति मानने को जो पक्ष व्यामोह कह रहे है वह अनुचित है वास्तव में खुद ही पक्ष व्यामोह में हैं, चूंकि पीछे हमने "धूवं दाऊण जिणवराणं" रायपसेणी के पाठ से सिद्ध किया है कि स्थापना का कथंचित् अभेद मानकर जिनप्रतिमा को जिन के समान मानकर ही यह प्रयोग हुआ है । अतः 'अरिहंत' में 'अरिहंत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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