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- जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा इसी प्रकार - गुरु के उपदेश से स्थानकवासी लोग स्थानक बनवाते ही है, उसमें मिट्टी खुदाई, पानी आदि का बड़ा आरंभ-समारंभ होता ही है, तो भी स्थानकवासी संत इसे करवाते ही हैं।
____ फूलों की हिंसा की तुलना डोशीजी पंचेन्द्रिय यज्ञ हिंसा से करते है। पक्षांघता की चरम सीमा है । यज्ञ की आग में पशु ज्यादा पीड़ा पाकर मरेगा ही और न वह स्वर्ग में भी जाएगा यह तो डोशीजी खुद भी मानते है तो भी व्यर्थ का कुतर्क दे रहे है ।
जैन तत्त्वादर्श के "जीवअदत्त" का पाठ अस्थान में हैं, जीव अदत्त वगैरह दोष साधु के लिए हैं वे उसका त्याग करते ही हैं, गृहस्थ त्याग नहीं कर पाते हैं । जिनपूजा का विधान गृहस्थ के लिये ही है। इसलिए डोशीजी का उठाया विरोध भी अस्थान में है ।
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