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ग्रंथ गुरु भगवंत के पास बैठकर बराबर पढ़ने-समझने से श्रावक के लिए प्रभु की क्या आज्ञाएं हैं, इसका ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है । इसके अलावा धर्मक्षेत्र के संचालन की जिम्मेदारी सिर पर हो ऐसे पुण्यात्मा श्रावक को द्रव्य सप्ततिका ग्रंथ भी उपरोक्त पद्धति से पढ़ना चाहिए ।
शंका- ३८ : जिनेश्वर परमात्मा की मूर्ति घर जिनालय में है, किन्तु उनके साथ ही हनुमानजी तथा लक्ष्मीजी आदि अन्य धर्मियों की मुद्रावाली मूर्तियां भी हैं तो ऐसे घर जिनालय के दर्शनार्थ जाएं ?
समाधान- ३८ : घर जिनालय अथवा संघ जिनालय में मात्र जिनेश्वर परमात्मा, सद्गुरु-निर्ग्रथ तथा मूलनायक परमात्मा के शासन की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिन पर समवसरण में खुद परमात्मा ने डाली है, उन्हीं शासनदेव-यक्ष-यक्षिणी की शिल्पविधि अनुसार प्रतिमा स्थापित की जा सकती है और जहां इसी तरह से प्रस्थापित की गई हो, वहीं पर संघ को दर्शन-पूजनार्थ जाना चाहिए । अन्य धर्मियों के देवी-देवताओं तथा गुरुओं की मूर्तियां जहां प्रस्थापित की जाती हैं, उन स्थानों पर जाने से मिथ्यात्व लगता है । वहां जाने से श्री जिनराज तथा जैनधर्म की लघुता करने का पाप लगता है ।
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'दादा भगवान' के नाम से प्रचारित गृहस्थ मत के मंदिरों में मूल गभारा में श्री सीमंधरस्वामीजी की तथा बगलवाले गर्भगृहों में श्री कृष्ण की तथा श्री शंकर भगवान की प्रतिमा प्रस्थापित देखने को मिलती है । ऐसे स्थान पर जाना भी मिथ्यात्व की ही करनी है । वहां जाकर श्री सीमंधर प्रभु को देखने - पूजनेवाला मिथ्यात्व को आमंत्रण देकर अपने आत्मघर में लाता है ।
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शंका- ३९ : शरीर की असहनीय गर्मी के कारण घर जिनालय अथवा संघ जिनालय में गभारा अथवा बाहर शांति से तीन - चार घंटे जिनभक्ति हो सके इसके लिए ए.सी. ( एयरकंडीशनर) मशीन रखे जा सकते हैं ?
समाधान- ३९ : घर जिनालय हो अथवा संघ जिनालय, इनमें कहीं भी ए. सी. तो क्या पंखा भी नहीं लगाया जा सकता । जिनभक्ति शांति से हो, इस बहाने से यह और ऐसी अन्य कई बातें, दलीलें पेश की जाएगी । इसलिए विवेकवान प्रभुभक्तों को इस मार्ग पर न चलना ही हितकर है । यह शीथिलाचार की ओर धकेलने व छः काय जीवों की हिंसा का मार्ग है । इसलिए ऐसे सुविधागामी और आरामतलब मार्ग से बचना चाहिए।
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धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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