________________
शंका-४० : चांदी को चौबीसी के भगवान अलग हो गए हैं । पूजा में काम आ सकते हैं या फिर विसर्जन कर दें ?
समाधान-४० : कुशल कारीगर के पास विधि का जतन करते हुए चांदी को तार आदि द्वारा प्रतिमाजी को फिर से सुयोग्य स्थान पर स्थापित कर देना हितावह है । यूं ही विसर्जन करने का मार्ग योग्य नहीं है । चौबीसी के अलग हए भगवान स्वयं खंडित हो गए हों तो विसर्जन के बारे में विचार करना जरूरी हो जाता है । इस बारे में प्रत्यक्ष देखने पर ही जरूरी परामर्श दे सकते हैं ।
शंका-४१ : भगवान के अंग पर बरास-पूजा हो सकती है या नहीं ? फिलहाल ऐसी किंवदंती सुनाई देती है कि बरास में केमिकल आता है । सत्य क्या है, यह बताने की विनंती है ।
समाधान-४१ : बरास में केमिकल आता हो, तो उसके बदले केमिकल-रहित बरास प्राप्त करने का पुरुषार्थ करना चाहिए । ऐसा पुरुषार्थ करने की बजाय केमिकल' का काल्पनिक भय खड़ा कर बरास के प्रयोग का ऐकांतिक निषेध करना - यह किसी भी तरह से योग्य प्रतीत नहीं होता । केमिकल' नाम मात्र से वस्तु का विरोध या निषेध कर देने का सिद्धांत यदि स्थापित कर दें, तो ज्यादातर विधियों का आज ही उच्छेद कर देना पड़ेगा । ऐसा करने से तो आलंबन ही नष्ट हो जाए । विधिमार्ग की स्थापना जब तक सर्वांश में न की जाए, तब तक प्रचलित विधि में हो रही अविधि को आगे कर समूल-विधि का विरोध कर समूल उच्छेद नहीं कर सकते । क्योंकि ऐसा करने से पूरा विधि-मार्ग ही खतरे में आ गिरेगा । केसर, कस्तूरी, बरास, भीमसेन कपूर, शुद्ध कपूर आदि सुगंधी द्रव्यों से मिश्रित चंदन से जिनबिंब की पूजा करने के अनेक विधान, उल्लेख एवं पाठ मौजूद हैं । अतः बरास मिश्रित चंदनपूजा शास्त्रोक्त ही है । इसमें कोई शंका न करें । वस्तु अच्छी व सच्ची प्राप्त हो इसका ध्यान जरुर रखें ताकि जिनभक्ति सुंदर हो सके ।
शंका-४२ : बडे तीर्थों में कुछ देवलियों पर श्रीफल के तोरण लगाए जाते हैं, उसका क्या महत्त्व है ? क्या यह शास्त्रीय है ?
समाधान-४२ : किसी भी तीर्थ या जिनालय में या अन्य किसी भी देव-देवी के स्थानों में भी, देवलियों के ऊपर इस तरह श्रीफल के तोरण बांधना-लगाना; इसमें किसी शास्त्रीय विधि का पालन हो रहा है - ऐसा बिल्कुल नहीं लगता है । यह एक देखादेखी से शुरु हुआ रिवाज है और भोग भूखे लोगों ने सांसारिक वासनाओं की पूर्ति हेतु ऐसे | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org