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मर्यादा का सावधानी पूर्वक पालन होना ही चाहिए । दूसरी बात : तुरंत इस्तेमाल करने
में
बड़ा लाभ - 'कम राशि में ज्यादा लाभ' होता है । बरसों के बीतने पर बढ़ी हुई राशि में भी महँगाई वृद्धि के कारण कार्य कम ही होता है । यह कईयों का अनुभव है ।
शंका- १७ : जीवदया के फंड (चंदा) में से कैन्सर या अन्य किसी प्राणघातक बिमारी से पीड़ित मानव को जीवनदान प्राप्त कराने हेतु दान दे सकते हैं या नहीं ? मनुष्य भी तो पंचेन्द्रिय जीव है न ?
समाधान- १७ : जीवदया के चंदे में 'जीव' शब्द की जो व्याख्या की गई है, उसके मुताबिक 'जीव' में मनुष्य के अलावा अन्य सभी त्रस (चलमान) पंचेन्द्रिय अबोल (गूंगे) पशु-पक्षियों का समावेश किया गया है । अतः इस चंदे या फंड में से किसी भी मनुष्य किसी भी प्रकार की मदद नहीं की जा सकती है ।
मनुष्य तो इन जीवों से भी कई गुना ज्यादा ताकतवर है, अपना कार्य करने को ! पशु-प [-पंखी रूप जीव तो हर प्रकार से निःसहाय एवं अबोल होते हैं । अतः उनकी दया हेतु यह चंदा (फंड) किया जाता है । मनुष्यों की सहायता हेतु 'अनुकंपा' का अलग चंदा (फंड) कर सकते हैं । इस चंदे में से जरुरत के अनुसार विवेकपूर्वक कैन्सर - पीड़ित मरीज को मदद या ऑपरेशन आदि में सहायता दी जा सकती है | परंतु इस चंदे में से भी (अनुकंपा का चंदा या फंड) अस्पतालों में या उसके विभागों में दान देना जायज नहीं । ऐसे अस्पतालों का निर्माण भी इसमें से नहीं कराया जा सकता । यह जैनशासन के परमार्थ ज्ञाता महापुरुषों की मर्यादा है ।
अनुकंपा के चंदे में से किसी संयोग विशेष में जरुरत पड़ने पर जीवदया हेतु राशि खर्च कर सकते हैं, परंतु जीवदया का चंदा तो अत्यंत निम्न, लाचार कक्षा के जीवों की दया हेतु अंकित खाता होने से, इसमें से कोई भी राशि, किसी भी संयोग में अनुकंपा (मान-राहत) में इस्तेमाल हो ही नहीं सकती । यह जैनशास्त्रोक्त कानून है, अतः कल्याणकामी हरएक आत्मा को चाहिए कि इस श्रेयस्कर मर्यादा का सावधानी से पालन करे ।
शंका- १८ : जीवदया की राशि का सदुपयोग नहीं होता हो और अनुकंपा की राशि अतीव आवश्यक हो तो जीवदया का चंदा करना छोड़कर अनुकंपाका ही चंदा करने हेतु प्रोत्साहन देना क्या जरुरी नहीं लगता ?
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धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें
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