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समाधान-१५ : जैन संघों में किसी भी प्रसंग पर हुई जीवदया की टीप के पैसे तुरंत ही भर देने चाहिए । अन्यथा लिखवाने वालों को अबोल जीवों की दया में अंतराय करने का पाप लगता है । दूसरी बात : संचालक या ट्रस्टीवर्ग टीप के आँकड़ों के अनुसार सभी आय का बँटवारा कर भेज देवे, पर वे जीवदया के पैसे ही यदि न आए हों तो उसका हवाला (जमा-उधार एन्ट्री) अन्य-अन्य देवद्रव्य या साधारण जैसे खातों में डाल दे, यह भी बिल्कुल अयोग्य एवं देवद्रव्यादि के भक्षण के पाप की ओर बढ़ाने वाला कार्य है । तीसरी बात : जितने दिन भरपाही में देरी होती है, उतने दिनों का धर्मादा (चैरीटी) द्रव्य के ब्याज का भी घाटा हो जाता है । जो चलाया नहीं जा सकता । अतः टीप में लिखवानेवाले को चाहिए कि पैसे साथ में ही लाकर तुरंत भर दें और संचालकट्रस्टी वर्ग भी जाँच-तपास कर सुयोग्य स्थान पर उसे फौरन भेज दें । यही न्याय बोलीउच्छामणी-चढ़ावा आदि में भी लागू होता है ।
शंका-१६ : जीवदया की राशि बहियों में जमा होती रहे । बैंकों में जमा होते-होते लाखों में आँकड़ा बढ़ता रहे । फिर भी उसका उपयोग न हो तो क्या यह उचित है ? उसके ब्याज के बारे में भी स्पष्टता करें । ___ समाधान-१६ : जीवदया की राशि बहियों में जमा होती ही रहे और बैंकों में रखकर
आँकड़ा बढ़ाने में ही जिन ट्रस्टी या अग्रणियों को रुचि है, वे भीषण पाप का उपार्जन कर रहे हैं, ऐसा शास्त्राधार से कहना ही होगा । बैंकों में रखने से जो राशि जीवदया हेतु आई, उसीका उपयोग जीवहिंसा आदि के कार्यों में बहुतायत होता रहता है । जिनाज्ञा प्रेमी, आत्मकल्याण के इच्छुक संचालकों को स्वयं जाँच-तपास कर योग्य तौर-तरीके से सुयोग्य पिंजरापोल आदि स्थानों में वह राशि लगा देनी चाहिए । जीवदया की राशि शेष (बैलेन्स) नहीं रख सकते । ऐसा करने से जीवों को दाना-पानी-रक्षा आदि की अंतराय लगता है । परिणामत: अल्पआयुष्य, इन्द्रिय हानि, गंभीर रोग, दुर्गति एवं यावत् बोधिदुर्लभता (जैन धर्म न मिलना) ऐसे फल भुगतने पड़ते हैं । ऐसा न हो इसके लिए सभी संचालक इस बारे में चौकन्ने रहें यह जरुरी है ।
जीवदया की राशि अशक्य अपरिहार्य रूप कहीं-कहीं बैंकों आदि में रखनी पड़ती हो तो उसका जितना भी ब्याज (सूद) आवे वह पूरा का पूरा बराबर गिनकर जीवदया खाते में ही जमा करना चाहिए । वह द्रव्य देवद्रव्य या साधारण आदि में मिल न जाए, उसी तरह देवद्रव्य या साधारण आदि द्रव्य भी जीवदया द्रव्य में मिल न जाय इस शास्त्रीय धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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