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________________ होता । श्रावक को परमात्मा की आरती उतारनी होती है, अत: वह मुकुट, हार आदि पहने वह योग्य है, पर किसी को व्यक्तिगत कुमारपाल आदि बनाने में तो उन महापुरुषों का अवमूल्यन होने की पूरी संभावना होती है । अंजनशलाका जैसे प्रसंगों में तो विशिष्ट विधिवाद रूप मांत्रिक संस्कारपूर्वक, पद के बहुमानपूर्वक क्रियाएँ की जाती है । वह एक विशिष्ट आचार है । उसको आलंबन कर ऐसे अनुष्ठान प्रचलित करने में महान क्रिया की लघुता करने का दोष भी पैदा होगा । अतः इस प्रथा को बढ़ावा देना उचित नहीं लगता । फिर भी किसी स्थान में इस तरह आरती उतारी ही गई हो, तो उस समय बुलवाई गई हर एक चढ़ावो की राशि जिनपूजा संबंधी होने से देवद्रव्य खाते में ही जमा करनी चाहिए । उस राशि में से ड्रेस, मेक-अप आदि कोई भी खर्चा नहीं निकाल सकते । क्योंकि पूजा-आरती यह श्रावक का कर्त्तव्य है और श्रावक को जो चाहिए उसका खर्चा खुद ही करे ।। शंका-१४ : अक्षय तृतीया के दिन साधुभगवंत को गन्ने का रस बहोराने, श्रेयांसकुमार बनकर पारणा कराने हेतु बुलवाए गए चढ़ावे की राशि गुरुद्रव्य-देवद्रव्य, वैयावच्च द्रव्य या साधारण खाते में जाएगी ? साधर्मिकभक्ति में यह द्रव्य इस्तेमाल कर सकते हैं ? समाधान-१४ : अक्षय तृतीया के दिन वर्षीतप का पारणा कर रहे महात्माओं को गौचरी जाने हेतु अलग से कोई विधि नहीं बताई है । दशवैकालिक आदि साध्वाचार दर्शक ग्रंथों में बताए अनुसार ही निर्दोष रूप से गौचरी प्राप्त करनी होती है । कोई एक व्यक्ति चढ़ावा आदि लेकर बहोरावे तो इस मर्यादा का पालन नहीं होता। दूसरी बात - श्रेयांसकुमार जैसे तद्भव मोक्षगामी महापुरुषों का अभिनय करने से उन महान पात्रों को लघुता होती है । इसलिए भी ऐसा नहीं किया जा सकता । फिर भी कहीं अज्ञानादि वश ऐसा चढ़ावा बुलवाया गया हो तो, वह चढ़ावा साधु जीवन संबंधित होने से उसकी तमाम राशि देवद्रव्य खाते में जमा कर उसे जिनालय के जिर्णोद्धार आदि में ही इस्तेमाल करनी चाहिए। शंका-१५ : जैन संघों में छोटे-मोटे कई प्रसंगों पर, महापूजन के अवसर पर, प्रतिष्ठा के समय जीवदया की टीप (चंदा) करते हैं । कई बार टीप लिखवानेवाले भरपाही देरी से करते हैं तो दोष किसे लगे ? धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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