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________________ समाधान-१० : साधारण ट्रस्ट की सम्पत्ति, किसी भी प्रकार से बेचने को आवश्यकता न होने पर भी बाजार दर से कम कीमत में बेचने में ट्रस्टियों को धर्मादाद्रव्य को नुकसान पहुंचाने का - नाश करने का पाप जरूर लगता है । फिर उसमें किसी भी श्रीमंत या सत्ताधीश की खुशामदी जैसे क्षुद्र तत्त्व सम्मिलित होते हों, तो यह पाप और भी चिकना बन जाता है । ऐसी बिक्री को संघहित के खिलाफ कह सकते हैं । व्यक्तिगत स्वार्थ को आगे कर किए गए ऐसे संघ हित विरुद्ध व्यवहारों को जरूर सुयोग्य स्थानों पर चुनौती दी जा सकती है । शक्तिसंपन्न विवेकी श्रावकों को चाहिए कि ऐसी चुनौती दें । यदि शक्तिसंपन्न श्रावक सुयोग्य रीति से विवेकपूर्वक चुनौती न दें तो उन्हें भी उपेक्षा का पाप लगता है। शंका-११ : उपाश्रय-पौषधशाला में होस्पिटल एवं प्रसूतिगृह बना सकते हैं क्या ? समाधान-११ : उपाश्रय-पौषधशाला केवल श्रीसंघ की धार्मिक क्रियाओं हेतु निर्मित अबाधित स्थान हैं । उनमें होस्पिटल या प्रसूतिगृह जैसा कोई भी सामाजिक कृत्य करनेकराने का विचार भी नहीं कर सकते । ऐसा करने से महापाप लगता है। शंका-१२ : उपाश्रय को होस्पिटल एवं प्रसूतिगृह बनाने हेतु बेचा जा सकता है क्या ? समाधान-१२ : संघ हित को ध्यान में रखकर अधिक जगहों को बेचने का प्रसंग भी आए तो सुयोग्य रीति से एवं सुयोग्य कार्य हेतु ही बेचकर पैसे खड़े कर सकते हैं । एक बात का जरूर ख्याल रखना चाहिए कि - ऐसे विक्रय से जैन धर्म की यतना प्रधान जीवनशैली को कोई भी नुकसान पहुँचने न पाए । अतः उपाश्रय का स्थान होस्पिटल एवं प्रसूतिगृह निर्माण हेतु बेचने की बात बिल्कुल उचित नहीं लगती । शंका-१३ : कुमारपाल की आरती में कुमारपाल, मंत्री, छड़ीदार, सेनापति आदि बनने के रुपयों में बोले गए चढ़ावों की आय कौनसे खाते में जाती है ? उसमें से आरती-प्रसंग पर किए जाते ड्रेस, मेक-अप का खर्चा निकाल सकते हैं ? समाधान-१३ : कुमारपाल महाराजा ने परमात्मा की आरती उतारी थी, वैसी आरती उतारने हेतु पहले स्वयं का जीवन कुमारपाल जैसा बनाना जरूरी है । आज जिस तरह मिट्टी के दीए आदि लेकर आरती उतारने का चलन चल पड़ा है, वह योग्य प्रतीत नहीं | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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