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शंका-८ : आजकल जिस केसर/चंदन से भगवान की पूजा होती है, वही केसर/ चंदन ललाट पर तिलक करने हेतु कटोरी में रखा जाता है । क्या यह अनुचित नहीं ?
और यदि यह अनुचित है, तो परद्रव्य से पूजा करनेवाले अल्प शक्तिवाले श्रावक को ललाट पर किस केसर का तिलक करना चाहिए ?
समाधान-८ : प्रभु पूजा हेतु एवं श्रावक को तिलक करने हेतु केसर/चंदन अलग अलग ही होने चाहिए । फिर भी यदि केसर/चंदन वैयक्तिक या साधारण द्रव्य के हों तो, उन्हें लाते/रखते समय इसमें से श्रावक को तिलक. करने हेतु भी काम में लिया जाएगा।' ऐसी बुद्धि-भावना हो, तो कोई हरकत नहीं है । सिर्फ जिनपूजा का ही उद्देश्य हो, तो दोष लगता है । साधारण या जिनमंदिर साधारण में से व्यवस्था की गई हो, तो व्यवस्था को स्वीकार करनेवाली पुण्यात्मा स्वयं उतने द्रव्य को मालिक बन जाती है।
क्योंकि देनेवाले ने सहर्ष-इच्छापूर्वक वस्तु दी है और लेनेवाले ने उनकी भावना का आदर करनेपूर्वक उसे ली है । अतः परद्रव्य संबंधी प्रश्न नहीं रहता । देनेवाले की इच्छा न हो और लेनेवाला ले दबाता हो, वहीं परद्रव्य संबंधी दोष लगता है । जहाँ पूरी खबर न हो, वहाँ तिलक करने हेतु जरूरी द्रव्य देवद्रव्य में जमा करवा देना चाहिए ।
शंका-९ : फुट (फल) मंदिरजी में चढ़ाने हेतु ही लिए हों तो घर में इस्तेमाल करने पर कोई दोष लगता है ?
समाधान-९ : फुट (फल) खरीदते समय ये फूट मंदिरजी में ही चढाऊंगा' ऐसा निश्चित विचार मन में हो तो उन्हें घर में इस्तेमाल करने पर दोष लगता है । पर सामान्य तौर पर घर एवं मंदिरजी : इन दोनों स्थान में इस्तेमाल करने हेतु इकट्ठे ही खरीदे हों, तो उसमें दोष नहीं लगता। __ शंका-१० : साधारण ट्रस्ट की सम्पत्ति, किसी भी प्रकार से बेचने की आवश्यकता न होने पर भी जैन समाज में वरीष्ठ स्थान-मान धरानेवाले व्यक्ति की खुशामद के लिए, उसकी वर्तमान बाजार-दर से कम में ही बेच दी जाए, तो क्या यह योग्य है ? क्या यह बिक्री संघहित के खिलाफ नहीं है ? क्या ट्रस्टियों द्वारा सिर्फ अपने व्यक्तिगत संबंध को लक्ष्य में रखकर, संघ हित को गौण कर किए गए विक्रय संबंधी ठहराव को केवल संघ में ही चुनौती दे सकते हैं ?
धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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