SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उसमें भी गुरुपूजन को पेटी पर ‘देवद्रव्य' (जिनमंदिर जीर्णोद्धार-नवनिर्माण) ऐसा स्पष्ट अक्षरों में लिख देना चाहिए । व्यवस्थापक गण विशेष ध्यान रख, जो द्रव्य जिस खाते का हो उसी खाते में ले जाएँ । कभीकभार गुरुपूजन करते समय साथ में ही ज्ञानपूजन भी किया जाता है एवं भूल से दोनों द्रव्य इकट्ठा भी हो जाते हैं, उस समय 'ऊपर के खाते का द्रव्य भूल से भी नीचे के खाते में चला न जाय' इस शास्त्रीय मर्यादा के पालन हेतु वह इकट्ठा द्रव्य गुरुपूजनदेवद्रव्य (जिनमंदिर जीर्णोद्धार-नवनिर्माण) को पेटी में डाल देने का कहा जाता है, वह उपयुक्त है । इससे किसी को दोष नहीं लगता एवं दोष से बचाया जाता है । फिर भी कोई कारण बिना ज्ञानद्रव्य-देवद्रव्य में ले जाना उचित नहीं है । ऐसा करने से व्यवस्थापकों को जरूर दोष लगता है । शंका-७ : जिस मंदिरजी की व्यवस्था के बारे में हमें शंका हो, वहाँ अक्षत-फलनैवेद्य पूजा कर सकते हैं या नहीं ? भंडार-गोलख में पैसे रख सकते हैं या नहीं ? हर किसी की उतनी शक्ति नहीं होती कि - अक्षत-फल-नैवेद्य जितनी ही राशि देवद्रव्य में भर दें एवं दोष से बचें । दोष से बचने का विकल्प बताया है वह तो सिर्फ शक्तिसंपन्न वर्ग को ही माफिक आ सकेगा कि - रोज की पूजा जितनी राशि देवद्रव्य में भर दे । ऐसे स्थानों पर पूजा-आरती जैसी बोलियाँ बोल सकते हैं क्या ? समाधान-७ : पहले क्रम में जिस मंदिरजी में पूजा करनी हो वहाँ की देवद्रव्यव्यवस्था की पक्के तौर पर पूरी जानकारी करलें । जहाँ भी शंका हो वहाँ दोष का गणित गिनना ही होगा । फिर भी अन्य सुविधा न हो एवं पूजा करनी ही पड़े तो सामर्थ्यवान श्रावक को चाहिए कि जितनी राशि/फल-नैवेद्यादि की हो उतनी देवद्रव्य खाते में शुद्ध व्यवस्था वाले स्थान में जमा करवा दें । जिनकी इतनी शक्ति नहीं है, उनके लिए दोष लगे वैसी ऊंची क्रिया करना शास्त्र ने नहीं कहा है । उसे चाहिए कि अपनी शक्ति अनुसार पूजादि कर उस फल-नैवेद्यादि की रकम ऊपर अनुसार शुद्ध व्यवस्था वाले स्थान में जमा करवाएँ । यह भी शक्य न हो तो उनके लिए पूजा के अन्य-अन्य प्रकार - 'फूलों को गूंथना, केसर घिस देना, अंगरचना में सहायक बनना' आदि अनेक मार्ग सुविहित आचार्यों ने धर्मग्रंथों में स्पष्ट दिखाए हैं । अतः शक्ति के अनुसार भूमिका का निर्वहन करने से उपरोक्त कोई भी प्रश्न खड़ा नहीं रहता । | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? विमद्रव्य का संचालन कस कर | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy