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________________ शंका-४ : एकबार मंदिर में चढ़ी बादामें फिर से चढ़ा सकते हैं क्या ? मंदिर में चढी बादामों को बाजार में बेचने पर अल्प मूल्य आता है, उससे बेहतर है कि ज्यादा कीमत देकर हम खरीद लें, एवं घर में उपयोग न करते हुए मंदिर में फिर से चढाएँ । ऐसा करने में क्या कोई दोष लगता है ? समाधान-४ : मंदिर में चढी बादामें, फल, नैवेद्य, श्रीफल एवं चावल आदि चीजें निर्माल्य गिने जाते हैं । एकबार जो चीजें निर्माल्य बन गई वे फिर से चढ़ाई नहीं जाती । भगवान की भक्ति में नित्यप्रति ताजा एवं नए फल-नैवेद्य, श्रीफल वगैरह ही चढ़ाने होते हैं । अतः एक बार चढ़ी ऐसी चीजें फिर से चढ़ाने से निर्माल्य चढ़ाने का दोष लगता है। प्रभु के सामने चढाए फल-नैवेद्यादि तमाम चीजें अजैनों को बेचकर, वह द्रव्य देवद्रव्य खाते में जमा करना चाहिए । शंका-५ : हम हर रोज अष्टप्रकारी पूजा करते हैं, अष्टप्रकारी पूजा की सभी सामग्री भी हम हमारी ले जाते हैं, सिर्फ केसर घिसने एवं प्रक्षाल हेतु पानी तथा पत्थर (ओरसीया) मंदिरजी का इस्तेमाल करते हैं, ये दो चीजें जो इस्तेमाल करते हैं, उसका नकरा मंदिरजी में देते हैं, तो क्या हमें कोई दोष लगता है ? समाधान-५ : आप पूरा नकरा भर देते हो तो आपको ‘मंदिरजी की चीजें इस्तेमाल करने का' दोष नहीं लगता है । शंका-६ : विनाश आदि खास कारण बिना भी ज्ञानपूजन का द्रव्य देवद्रव्य की पेटी में डाल सकते हैं क्या ? ज्ञानपूजन एवं गुरुपूजन : इन दोनों का द्रव्य रखने हेतु एक ही पेटी रख सकते हैं क्या ? जो द्रव्य जिस खाते का हो उसी खाते में जमा होना चाहिए न ? जो ऐसा न करे तो व्यवस्थापकों को दोष लगता है ? समाधान-६ : ज्ञान-पुस्तक पर पूजा हेतु चढ़ाया द्रव्य ज्ञानखाते में जाता है एवं गुरु भगवंतों की नवांगी/एकांगी आदि पूजा का द्रव्य गुरुपूजन-गुरुद्रव्य-देवद्रव्य (जिनमंदिर जीर्णोद्धार-नवनिर्माण) में जाता है । यह शास्त्रीय मर्यादा है । जिस खाते का द्रव्य हो वह उसी खाते में ले जाना चाहिए । यह मार्ग है । अतः दोनों ही खातों के लिए अलगअलग कायमी पेटियाँ रखनी चाहिए । |६० धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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