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________________ शंखेश्वरजी की पेढ़ी की ओर से प्राप्त पत्र की अक्षरशः प्रतिलिपि यहाँ प्रस्तुत है । “पत्र जा. सं. १८५/१५/९५ सेठ जीवणदास गोडीदास प्रति श्री महेन्द्रभाई साकरचंद शाह शंखेश्वर पार्श्वनाथ बंगला नं. १/१ केवडिया कॉलोनी, जैन देरासर ट्रस्ट जि. भरुच-३९३१५१ वाया-हारीज, मु. शंखेश्वर, जि. महेसाणा । तारीख : २२-५-९५ श्रीमानजी, जय जिनेन्द्र के साथ लिखना है कि आपका दि. १७-५-९५ का पत्र प्राप्त हुआ है । जिसमें आरती-मंगल दीपक के द्रव्य के विषय में पूछा गया था । उपरोक्त आरती/मंगल दीपक का द्रव्य भंडार में जाता है, यहाँ पुजारी को नहीं दिया जाता है, जो विदित हो । काम सेवा लिखें । - लि. जनरल मेनेजर कनुभाई के जय जिनेन्द्र" सब से विशाल कार्यव्यवस्था का संचालन करनेवाली तीर्थ की पेढ़ियों में आरती/ मंगल दीपक की आय के विषय में शास्त्रीय प्रथा का पालन होता है, वह आनंद का एवं अनुमोदनीय विषय है । भारत एवं भारत के बाहर के सभी जिनालयों के संचालक इस आदर्श को ध्यान में रखकर शास्त्रीय हितकर मार्ग का अनुसरण करें यही अभिलाषा है । | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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