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परिशिष्ट-५ आपके प्रश्न-शास्त्रीय उत्तर शंका-१ : प्रभु की आरती, मंगलदीप में श्रावक जो द्रव्य-रुपया वगैरह पधराते हैं, उस पर किसका अधिकार ? पुजारी का या देवद्रव्य भंडार खाते का ?
समाधान-१ : प्रभु की आरती, मंगलदीप में जो भी द्रव्य-धनादि आता है, वह प्रभु को ही चढ़ाया जाता है । अतः देवद्रव्य-भंडार खाते में ही जमा करना चाहिए । उस पर पुजारी का वास्तव में हक नहीं होता । कहीं-कहीं पुजारियों को देने की प्रवृत्ति चलती है, पर वह शास्त्रीय नहीं है । ऐसे स्थानों पर पुजारी वर्ग को अन्य प्रकार से संतुष्ट कर, उनको व्यवस्था कर आरती-मंगलदीप की रकम को देवद्रव्य में जमा करने की शास्त्रीय व्यवस्था का पुनर्निर्माण करना जरूरी है । श्वेतांबरों की शीर्षस्थ आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी एवं श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ की पेढ़ी के अंतर्गत जितने भी तीर्थों की व्यवस्था है, वहाँ हर जगह आरती-मंगलदीप के द्रव्य की आय देवद्रव्य में ही जमा की जाती है ।
शंका-२ : भगवान के आगे अष्टमंगल का आलेखन करना चाहिए या अष्टमंगल को पाटली (पट्ट) की पूजा करनी चाहिए ? अष्टमंगल का विधान कहाँ प्राप्त होता है ?
समाधान-२ : भगवान के आगे अष्टमंगल करने की विधि जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति नामक आगम ग्रंथ में लिखी है । प्रभु के आगे सुवर्ण रौप्यादि रत्नों के तंदुल (अक्षत) से या शुद्ध अखंड अक्षतों (चावल) से अष्टमंगल की आकृतियाँ बनानी चाहिए । ये आकार मंगलकारी होते हैं । अष्टमंगल के पट्ट का पूजन नहीं होता । जिन्हें अष्टमंगल की आकृतियाँ बनानी नहीं आती, ऐसे व्यक्तियों द्वारा पट्ट बनाकर चढ़ाने की प्रवृत्ति शुरू हुई है, ऐसा प्रतीत होता है । शांतिस्नात्रादि विशिष्ट विधानों में ही अलग से अष्टमंगल पट्ट के पूजन की विधि होती है ।
शंका-३ : विहारादि स्थलों में या अन्य कहीं भी नया उपाश्रय बनवाना हो या पुराने उपाश्रय का जिणोद्धार कराना हो, तो साधु-साध्वी वैयावच्च खाते की रकम में से खर्च कर सकते हैं या नहीं?
समाधान-३ : साधु-साध्वी वैयावच्च खाते की रकम में से उपाश्रय नहीं बनवा सकते । साधु-साध्वी के निमित्त बने हुए उपाश्रयों में साधु-साध्वीजी नहीं ठहर सकते एवं उसमें श्रावक-श्राविकाएँ भी धर्मक्रिया नहीं कर सकते । जो उपाश्रय श्रावक-श्राविका हेतु ही बने हों, उसमें ही श्रावक-श्राविका धर्मक्रिया कर सकते हैं और श्रावक-श्राविका हेतु निर्मित उपाश्रयों में साधु-साध्वी ठहर सकते हैं । अतः श्रावक-श्राविका के निमित्त बनने वाले उपाश्रयों में साधु-साध्वी वैयावच्च खाते का द्रव्य इस्तेमाल नहीं किया जा
धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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