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________________ ४४ - ट्रस्टियों की मीटिंगों में वह अवश्य उपस्थित रहे । जिनाज्ञानुसारी कार्य में वह हमेशा सहयोग दें । आज्ञा विरुद्ध कार्य को समझदारी तथा विवेक से रोकें । ४५ - जो सच हो, वही मेरे लिए स्वीकार्य, मेरी ही बात सच है ऐसा न मानें । अपनी बात मनवाने का कदाग्रह न रखें । मान-कषाय, अहंकार - Ego के आधीन होकर संघ के कार्यों को बिगाड़ें नहीं । ४६ - भगवान के धाम में कहीं सिगरेट-बीड़ी का उपयोग न होने दें । मावा, पान-मसाला, सुपारी इत्यादि न स्वयं खाएं, न दूसरों को खिलाएं । ऐसे खानपान को रोकें । कार्यालय में बैठकर चाय-काफी या नाश्ता करना शोभास्पद नहीं है । ४७ - शासन के किसी भी कार्य के लिए ट्रस्टी, अपनी शक्ति हो तो स्वद्रव्य खर्च करके ही लाभ लें । उदाहरण के लिए - कहीं जिनमंदिर के कार्य हेतु गए हों तो रेल का किराया साधारण खाते में से लेना पड़े तो लें, परंतु भोजन आदि का खर्च तो नहीं लें। संघ के खर्च से कहीं गए तो उस दौरान निजी व्यापार आदि कुछ न करें । ४८ - जिनमंदिर, उपाश्रय, आयंबिल भवन, पाठशाला, भोजनालय, धर्मशाला आदि विषयक छोटी-बड़ी सभी बातों का अभ्यास करके, उन स्थानों की व्यवस्था धर्मनीति के अनुसार सुचारु रूप से चलती रहे, ऐसा आयोजन करें । ४९ - अगर ट्रस्टी भारतीय आर्य वेशभूषा धारण करें तो शालीन लगेगा । यथासंभव वह पाश्चात्य वेशभूषा का त्याग करें । ५० - पेढ़ी-कार्यालय में गद्दी-तकिया आदि की प्राचीन व्यवस्था रखी जाए । टेबल कुर्सी जैसी विदेशी सुविधाएँ रखना उचित नहीं है । ५१ - संघ को पेढ़ी-कार्यालय को समाचार पत्र-पत्रिकाओं से दूर रखा जाए । अन्यथा वह सार्वजनिक वाचनालय बन जाएगी। ५२ - पेढ़ी-कार्यालय से व्यक्तिगत फोन-फैक्स आदि न किए जाएं । स्मरण में रहे कि धर्मस्थानों में प्रवेश करने से पूर्व निसीहि' बोला जाता है । क र्म व्य का संचालन कैसे करें । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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