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हमारा ट्रस्टी सम्यक्त्वपूर्ण बारहों व्रतों का पालन करनेवाला हो तो 'सोने में सुहागा' वाली बात होगी । सम्यक्त्वधारी श्रावक - १ श्री वीतरागदेव, २ - निर्ग्रथ गुरु और ३ - जिनाज्ञामूलक जीवदयाप्रधान जैन धर्म : इन तीनों के अतिरिक्त अन्य किसी भी रागी, द्वेषी, अज्ञानी देव- गुरुओं को एवं हिंसक धर्मों को न माने । अनिवार्य संयोगों के बिना उनके स्थानों में न जाए ।
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१३ - ट्रस्टी प्रतिदिन जिनमंदिर जाकर दर्शन कर के स्वद्रव्य से पूजा - भक्ति करें ।
- निश्चित समय मर्यादा में चढ़ावे की रकम न भरी जाए तो साहुकारी दर से सूद
लेने का प्रबंध किया जाए। ऐसा अगर नहीं किया जाता है तो देवद्रव्य आदि धर्मद्रव्य, चढ़ावा बोलने वालों के घर-व्यापार में इस्तेमाल हो जाता है । इससे वे धर्मद्रव्य के भोगी बनते हैं ।
१४ वह जिनमंदिर जाएं तब प्रथम जिनमंदिर का काम, स्वच्छता आदि पर ध्यान दें । प्रतिमाजी कितनी हैं, सिद्धचक्र कितने हैं, कितने अलंकार ठीक हैं, यह सब जाँच कर उनकी सुरक्षा का प्रबंध करें ।
१५ - ट्रस्टी जिनवाणी - व्याख्यान में प्रथम पंक्ति में बैठें। गुरुवंदन, गुरुपूजन, ज्ञानपूजन करने के बाद ही वे प्रवचन सुनें । व्याख्यान में कही गई बातों पर मनन करें तथा यथासंभव उसे व्यवहार में अपनाएं ।
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प्रत्येक ट्रस्टी या संचालक के ऊपर एक गीतार्थ सद्गुरु होने चाहिए, जिनकी शास्त्रानुसारी आज्ञा-मार्गदर्शन उसके लिए सर्वस्व हो ।
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१६ - ट्रस्टी बनते ही सर्व प्रथम गीतार्थ भवभीरु गुरु के पास भव-आलोचना लेने का कार्य करना हितावह है । अपनी शक्ति - भक्ति आदि का पूरा ब्यौरा गुरुदेव को देना आवश्यक है, जिससे वे उसकी भूमिका के अनुसार कार्य सौंप सकें । १७ - ट्रस्टी के जीवन में सात व्यसन तो होने ही नहीं चाहिए । १ २ - मांसाहार, ३ - जुआ, ४ शिकार, ५ परस्त्रीगमन, ६ वेश्यागमन और ७ - चोरी |
शराब,
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सरकारी कायदे-कानून आदि का ज्ञान होना, यह ट्रस्टी की विशेष योग्यता है ।
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धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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