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१४ - ऋद्धिसंपन्न श्रावक, सिद्धाचल आदि महातीर्थों को एवं अपने गाँव-शहर के
आसपास स्थित तीर्थों की उपरोक्त विधि से रक्षा करें, उनका उद्धार करें तथा
उन पर लगाए गए कर - Tax दूर करवाएं । ये तथा ऐसे ही अन्य भी कार्य करने चाहिए । जैसे कि - १ - जिनालय में Electricity-Lights का उपयोग न किया जाए । अनेक प्राचीन
तीर्थ और प्रभावपूर्ण जिनमंदिरों में बीजली की बत्तियों का उपयोग नहीं किया
जाता। २ - दीपकों को काँच के दीपपात्र आदि में रखा जाए, जिससे त्रस जीवों की रक्षा
हो सके । ३ - जिनमंदिरों के शिखर पर कायमी मंच न बनाए जाएं । यह शिल्प का दोष माना
गया है । इससे संघ का विकास बैध जाता है । ४ - अंगलूंछन-पाटलूंछन (पोंछने के) वस्त्र धोने के लिए अलग-अलग व्यवस्था
की जाए। ५ - स्नात्रजल को सुखा देने के लिए बड़े, जयणा का पालन हो सके ऐसे, जलपात्र
बनाए जाएं । उसमें निगोद-त्रस जीवों की उत्पत्ति तथा नाश न हो उसका ध्यान
रहे । ६ - जिनमंदिरों के शिखर पर वृक्ष उग आते हैं, जो मंदिर को नुकसान पहुंचाते हैं ।
ऐसा नियमित रूप से साफ-सफाई एवं रख-रखाव के अभाव में होता है, अतः
उन्हें यतनापूर्वक दूर करें । ७ - निर्माल्य पुष्पों को छाँव में सुखाकर थोड़े-थोड़े दिनों के अंतराल पर किसी का
पैर न पड़े ऐसे निर्जन स्थान में विसर्जित करना आदि ।
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धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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