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'द्रव्यसप्ततिका' ग्रंथ में जिनमंदिर का ध्यान रखनेवाले ट्रस्टी - कार्यवाहक प्रबंधक अग्रणि सुश्रावक हेतु कुछ कार्य बताए गए हैं :
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७ केसर-चंदन, दूध-घी आदि पूजा योग्य वस्तुएँ प्राप्त कर उनका संचय करना ।
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परिशिष्ट-२
जिनमंदिर विषयक कुछ कार्य :
जो संघ के अग्रणियों को करने हैं
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जिनमंदिर का चूना आदि पदार्थों से संस्कार करना, रंगरोगान करवाना ।
जिनालय तथा उसके आसपास के प्रदेश को स्वच्छ करवाना ।
पूजा
के उपकरण नए बनवाना, उन्हें व्यवस्थित रखना, उनका हिसाब रखना । प्रभु प्रतिमाजी एवं परिकर की निर्मलता को बनाए रखना ।
महापूजा आदि में दीपक की रोशनी आदि के द्वारा शोभा - वृद्धि करना । अक्षत, नैवेद्य, फल आदि निर्माल्य वस्तुओं की सुरक्षा की व्यवस्था करना । निर्माल्य वस्तुओं को जैनेतरों में सुयोग्य मूल्य में बेचकर प्राप्त रकम देवद्रव्य में जमा करना । प्रभु की आंगी में प्रयुक्त वरक - बादला आदि को रीफाईनरी में गलवाकर प्राप्त सोना-चांदी को देवद्रव्य में जमा करवाना ।
देवद्रव्य एवं धर्मादा द्रव्य की वसूली समय पर करना ।
वसूल किया गया द्रव्य सुरक्षित स्थान में रखना ।
सभी द्रव्य एवं खातों का हिसाब स्पष्ट और साफ़ लिखवाना ।
भंडार की आय, खर्च एवं सुरक्षा का प्रबंध करना ।
भंडार, सुरक्षा-स्थान आदि की सुरक्षा के लिए चौकीदार आदि की व्यवस्था
करना ।
साधर्मिक जन, गुरुभगवंत, ज्ञानभंडार तथा धर्मशाला आदि की उचित पद्धति से देखभाल करने में अपनी शक्ति का उपयोग करना ।
| धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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