SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १ २ 'द्रव्यसप्ततिका' ग्रंथ में जिनमंदिर का ध्यान रखनेवाले ट्रस्टी - कार्यवाहक प्रबंधक अग्रणि सुश्रावक हेतु कुछ कार्य बताए गए हैं : ३ ४ ५ ६ ८ ९ १० ११ १२ १३ - ७ केसर-चंदन, दूध-घी आदि पूजा योग्य वस्तुएँ प्राप्त कर उनका संचय करना । - - - - - - - - परिशिष्ट-२ जिनमंदिर विषयक कुछ कार्य : जो संघ के अग्रणियों को करने हैं - जिनमंदिर का चूना आदि पदार्थों से संस्कार करना, रंगरोगान करवाना । जिनालय तथा उसके आसपास के प्रदेश को स्वच्छ करवाना । पूजा के उपकरण नए बनवाना, उन्हें व्यवस्थित रखना, उनका हिसाब रखना । प्रभु प्रतिमाजी एवं परिकर की निर्मलता को बनाए रखना । महापूजा आदि में दीपक की रोशनी आदि के द्वारा शोभा - वृद्धि करना । अक्षत, नैवेद्य, फल आदि निर्माल्य वस्तुओं की सुरक्षा की व्यवस्था करना । निर्माल्य वस्तुओं को जैनेतरों में सुयोग्य मूल्य में बेचकर प्राप्त रकम देवद्रव्य में जमा करना । प्रभु की आंगी में प्रयुक्त वरक - बादला आदि को रीफाईनरी में गलवाकर प्राप्त सोना-चांदी को देवद्रव्य में जमा करवाना । देवद्रव्य एवं धर्मादा द्रव्य की वसूली समय पर करना । वसूल किया गया द्रव्य सुरक्षित स्थान में रखना । सभी द्रव्य एवं खातों का हिसाब स्पष्ट और साफ़ लिखवाना । भंडार की आय, खर्च एवं सुरक्षा का प्रबंध करना । भंडार, सुरक्षा-स्थान आदि की सुरक्षा के लिए चौकीदार आदि की व्यवस्था करना । साधर्मिक जन, गुरुभगवंत, ज्ञानभंडार तथा धर्मशाला आदि की उचित पद्धति से देखभाल करने में अपनी शक्ति का उपयोग करना । | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? Jain Education International For Personal & Private Use Only ४७ www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy