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+ शास्त्रोक्त मार्गों से देवद्रव्य की वृद्धि तथा रक्षा करनेवाला अपना संसार सोमित
करता है तथा तीर्थंकर गौत्र का बंध भी करता है, जबकि देवद्रव्य का भक्षण, नाश तथा उपेक्षा करनेवाला यावत् अनंत संसारो बनता है । • अज्ञानवश भी अगर देवद्रव्य का उपभोग हुआ हो तो तुरंत गीतार्थ गुरु भगवंतों
के पास आलोचना - प्रायश्चित्त करना चाहिए । • देवद्रव्य का अनुचित उपयोग - उपभोग करनेवाले गाँव-शहर शोभाविहीन,
निर्धन, भाग्यहीन, व्यापारहीन और तुच्छ बन जाते हैं । • देवद्रव्य तथा परस्त्री का उपभोग करनेवाला सात बार सातवीं नरक में जाता है,
ऐसा प्रभु श्री महावीर ने श्री गौतमस्वामीजी से कहा था । • जिस घर में देवद्रव्य का उपभोग हुआ हो, उस घर की कोई भी वस्तु श्रावक
को अपने उपयोग में नहीं लेनी चाहिए । + वेशधारी, आचार-विचार भ्रष्ट, शिथिलाचारी साधु-साध्वी के पास कोई मालमिलक्त इकट्ठी की हुई मिले या उनके कालधर्म के बाद भी उनकी कोई पूंजी मिले तो वह द्रव्य अत्यंत अशुद्ध होने से जीवदया में खर्च करना चाहिए । तीर्थंकर की आज्ञा का भंग होता देखकर भी जो मनुष्य चुप रहते हैं, वे अविधि की अनुमोदना करनेवाले हैं । इससे उनके व्रत-महाव्रत का लोप हो गया है, ऐसा समझना चाहिए । + धर्म की निंदा करनेवाले को एवं करानेवाले को भवांतर में धर्म प्राप्ति नहीं
होती। + भावना स्वयं को मोक्ष दिलाती है, जब कि प्रभावना तो स्वयं के साथ दूसरों को
भी मोक्ष दिलाती है । जैनशासन की प्रभावना करनेवाला जीव तीर्थंकर बनता
शास्त्र में कहा है कि - 'गुरु-सक्खिओ धम्मो । धर्म गुरु की साक्षी में करना होता है।
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धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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