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प्रभु को चढ़ाने मात्र से देवद्रव्य नहीं बनते । श्रावक उन्हें पुनः अपने उपयोग में ले सकता है । देव की भक्ति में जो समर्पित किया जाता है, वही देवद्रव्य बनता है ।
जिनालय की छत की परनाली से आए हुए पानी का उपयोग श्रावक अपने या दूसरों के कार्य में न करे, क्योंकि देव को अर्पित भोगद्रव्य की ही तरह ऐसे द्रव्यों का उपभोग भी दोषदायक है ।
देवद्रव्य के वाद्य आदि उपकरण गुरुमहाराज या संघ के सम्मुख (स्वागत यात्रा में) न बजाएं, उनका उपयोग न करें । अगर किसी विशेष कारण से बजानाप्रयुक्त करना ही पड़े तो अधिक नकरा (मूल्य) देकर ही बजाएं - प्रयुक्त करें • देवद्रव्य के उपकरण नकरा दिए बिना अपने कार्य में उपयोग में लेनेवाला
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दुःख होता है ।
• ज्ञानद्रव्य के कागज़, कलम आदि उपकरण साधु-साध्वीजी भगवंतों के लिए उपयोग में लिए जा सकते हैं । श्रावक उनका उपयोग नहीं कर सकते । ज्ञानद्रव्य खर्च करके लाए गए या प्रकाशित किए गए धार्मिक पुस्तक भी सुयोग्य 'नकरा' दिए बिना श्रावक नहीं पढ़ सकते ।
+ ज्ञान द्रव्य से निर्मित, जीर्णोद्धार किए गए या खरीदे गए मकान, अलमारियाँ, मेज, कागज, ताडपत्र आदि सामग्री भी केवल पंचमहाव्रत धारी साधु-साध्वीजी भगवंतो को ज्ञान- अध्ययन हेतु अर्पित कर सकते हैं ।
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इसी कारण से, ज्ञान द्रव्य से बने मकानों, भंडारों, ज्ञानमंदिरों में साधु-साध्वीजी केवल ज्ञानाध्ययन हेतु विराम कर सकते हैं । वहाँ शयन ( संथारा), भोजन (गोचरी) पानी, आदि क्रिया नहीं कर सकते ।
* ज्ञानद्रव्य जैन पंडित या श्रावक को नहीं दिया जा सकता, अजैन (जैनेतर) अध्यापक को दिया जा सकता है । परंतु अध्यापक यदि श्रावकक-श्राविकाओं को भी पढ़ाता हो तो उसे ज्ञानद्रव्य नहीं दे सकते ।
धार्मिक पाठशालाएँ कि जिनमें श्रावक-श्राविकाएँ या / और उनकी संतानें पढ़ती हों तो उसका खर्च, उसके जैन- अजैन अध्यापक-अध्यापिका की तनखा, पाठ्यपुस्तकों का खर्च एवं/ या इनाम - यात्रादिक खर्चा भी ज्ञानद्रव्य में से नहीं कर सकते ।
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धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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