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________________ देवद्रव्य ६५ - मूलनायक आदि प्रभु की हार-मुकुट-आभूषण पूजा करने की देवद्रव्य ६६ - एक लाख अखण्ड अक्षत से स्वस्तिक करने की देवद्रव्य ६७ - प्रथम भण्डार (गोलख) भरने की देवद्रव्य ६८ - आरती करने की ६९ - मंगल दीया करने की देवद्रव्य ७० - पोखणा करने की देवद्रव्य ७१ - प्रतिष्ठाचार्य का नवांगी गुरुपूजन करने की देवद्रव्य ७२ - द्वारोद्घाटन के दिन अष्टप्रकारी पूजा करने की देवद्रव्य अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा महोत्सव संबंधी उपरोक्त सभी बोलियों की आय देवद्रव्य में ही जाती है । इस राशि में से अंजनशलाका एवं/या प्रतिष्ठा संबंधी कार्यों का कोई भी खर्चा नहीं किया जा सकता । इस हेतु व्यक्तिगत, साधारण या जिनभक्ति-महोत्सव हेतु किए गए चंदे में से राशि इकट्ठी करनी चाहिए । ३२ - गुरुमंदिर में गुरुमूर्ति/पादुका प्रतिष्ठित करने संबंधी बोलियाँ बोली किस खाते में १- गुरुमूर्ति/पादुका का निर्माण करवाने की गुरुमंदिरादि २ - गुरुमूर्ति/पादुका के पाँच अभिषेक करने की गुरुमंदिरादि ३ - गुरुमूर्ति/पादुका की अष्टप्रकारी आदि पूजा करने की गुरुमंदिरादि ४ - गुरुमूर्ति/पादुका को प्रतिष्ठित करने की गुरुमंदिरादि ५- गुरुमंदिर/गुरुकुलिका की चारों दिशा में श्रीफल बधेरने की (चार बोलियाँ) गुरुमंदिरादि नोंध : उपरोक्त सभी राशि गुरुमंदिर-गुरुमूर्ति/पादुका जीर्णोद्धार/नवनिर्माण खाते में ली जाती है । इसके अलावा जिनमंदिर जीर्णोद्धार एवं नवनिर्माण में भी ले जा सकते हैं । |३० धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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