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साधारण
३० - देव-देवियों के बारे में समझ शास्त्र मर्यादानुसार मंदिरजी में मूलनायक भगवान के यक्ष-यक्षिणी के अलावा अन्य किसी भी देव-देवी की प्रतिमादि पधराना उचित नहीं है । मूलनायक प्रभु भी सपरिकर हो तो उनके देव-देवी भी परिकर में ही उत्कीर्ण होने से उनकी अलग मूर्तियाँ पधराने की आवश्यकता नहीं है । बोली
किस खाते में १ - जिनमंदिर स्व-द्रव्य से बनाया हो अथवा यक्ष-यक्षिणी की
देवकुलिका वाली जगह एवं देवकुलिका साधारण खाते में से बनवाई हो तो मूर्ति भरवाने की (निर्माण की) स्थापना
(प्रतिष्ठा) की २ - श्री मणिभद्रजी की मूर्ति भरवाने एवं स्थापना करने की और
उनके सामने रखे भंडार की आय (श्री मणिभद्रजी तपागच्छ के
अधिष्ठायक हैं एवं उपाश्रय में ही उनका स्थान होना चाहिए ।) साधारण ३ - जिनमंदिर के बाहर स्वद्रव्य या साधारण द्रव्य से प्राप्त/निर्मित
स्थान/देवकुलिका में अन्य किसी भी समकिती देव-देवी की प्रतिमा निर्माण करने की/प्रतिष्ठा करने की एवं उनके आगे रखे भंडार की आय
साधारण ४ - शासन देव को खेस एवं देवी को चूंदड़ी ओढ़ाने का नकरा/बोली साधारण नोंध : जहाँ यह नकरा/बोली देवद्रव्य में ले जाने का रिवाज चल रहा है वह
चलने दें ।
देव-देवियों संबंधी साधारण की समस्त आय श्रावक-श्राविकाओं को प्रभावना के रूप में या साधर्मिक वात्सल्य-भोज के रूप में इस्तेमाल न करें । इसी के साथ अनुकंपाजीवदया में भी इसका उपयोग नहीं हो सकता ।
शासन की मर्यादा का उल्लंघन करके देव-देवियों के स्वतंत्र स्थान खडे करना योग्य नहीं है । इससे वीतराग परमात्मा की लघुता होती है एवं भौतिक कामनाएँ पुष्ट होती हैं । २६
धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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