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________________ ४ - स्वर्गस्थ पूज्य के शरीर को धारण करती पालखी आदि के चारों छोर पकड़ने को... (१) आगे दायीं ओर (२) आगे बायीं ओर (३) पीछे दायीं ओर एवं (४) पीछे बायीं ओर ५ - दोहनी निकालने को एवं साथ में लेकर चलने की ६ - चार धूपदानियाँ एवं चार दीपक दानियाँ (दीवी) लेकर चलने की ७ - पालखी के ऊपर लगाई लोटियाँ (कलश) ले जाने की (१) मुख्य लोटी (२) बाकी की चार या आठ कुल नौ लोटियाँ ८ - पालखी के दौरान धर्मप्रभावक अनुकंपा दान देने की ९ - पूज्य के शरीर को अग्नि,प्रदान करने की उपरोक्त सभी बोलियों द्वारा प्राप्त आय का उपयोग : १ - जिनमंदिर के जीर्णोद्धार एवं नवनिर्माण में, २ - गुरुभगवंतों की प्रतिमा, पादुका एवं गुरुमंदिर निर्माण एवं जीर्णोद्धार आदि में, ३ - गुरुभगवंत के संयमी जीवन की अनुमोदना हेतु जिनभक्ति महोत्सव में (स्वामिवात्सल्य-प्रभावना बिना) इस्तेमाल किया जाता है । जैन संगीतकार एवं जैन विधिकार आदि को यह राशि नहीं दे सकते । नोंध : इस राशि का उपयोग अनुकंपा एवं जीवदया के कार्यों में कतई नहीं कर ____सकते । उस कार्य हेतु अलग से चंदा करके वे कार्य किए जा सकते हैं । अग्निसंस्कार (अग्निप्रदान) आदि की बोलियों की आय में से यदि गुरुमंदिर हेतु जगह खरीदी गई हो, अगर वहाँ गुरुमंदिर बना हो तो उस स्थान में पू. साधु-साध्वीजी या श्रावक-श्राविका निवास एवं संथारा (शयन) नहीं कर सकते । पू. साधु-साध्वीजी भगवंत वहाँ पर गौचरी (भोजन)-पानी नहीं कर सकते । धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? २५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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