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अतः एव गुरुपूजन में प्राप्त तमाम राशि जिनमंदिर जीर्णोद्धार एवं नवनिर्माण में ही खर्च करनी चाहिए ।
गुरुओं को कंबल आदि बहोराने की बोली बुलवाई जाती है, उसमें कंबल भोगार्ह होने से गुरु उसे इस्तेमाल कर सकेंगे, परंतु उसकी बोली की राशि तो धन स्वरूप होने से पूजार्ह ही मानी जाएगी, अत एव वह भी गुरुपूजन की तरह ही जिनमंदिर जीर्णोद्धारनवनिर्माण में ही जाएगी, यह ध्यान में रखें । विशेष :
गुरुपूजन की राशि से जिनेश्वर को केसर आदि से अंगपूजा में तथा मुकुट, अलंकार आदि आभरणपूजा में द्रव्य इस्तेमाल न करें।
बोली
किस खाते में ? गुरुपूजन की
पूजार्हगुरुद्रव्य–देवद्रव्य गुरुपूजन समय समर्पित पूजा द्रव्य
पूजार्हगुरुद्रव्य–देवद्रव्य गुरु महाराज को कंबल बहोराने की
पूजार्हगुरुद्रव्य–देवद्रव्य गुरु महाराज के सन्मुख की गहुँली का द्रव्य पूजार्हगुरुद्रव्य–देवद्रव्य गुरु महाराज के प्रवेश-स्वागत जुलुस समय वाहन, हाथी, घोड़े आदि की
पूजार्हगुरुद्रव्य–देवद्रव्य गुरु महाराज का प्रवेशोत्सव करने की पूजार्हगुरुद्रव्य–देवद्रव्य नोंध : गुरु महाराज के प्रवेश या व्याख्यान प्रसंग पर हीरा-माणेक, मोती आदि
कीमती द्रव्यों से गहुँली की हो तो वह द्रव्य देवद्रव्य में जमा कराएँ । वही गहुँली यदि दूसरी बार इस्तेमाल करनी हो तो उस समय उसकी जितनी
कीमत होती हो उतनी देवद्रव्य में जमा करवाएँ । गुरु के प्रवेशोत्सव की बोलियों में से प्रवेशोत्सव का कोई भी खर्चा नहीं किया जा सकता । बोलियों की संपूर्ण राशि देवद्रव्य में जाएगी । जबकि प्रवेशोत्सव का खर्चा व्यक्तिगत या साधारण खाते में से करना होगा । | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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