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देवद्रव्य
५ - गुरुपूजन की
देवद्रव्य ६ - कंबल बहोराने को ७ - नूतन नाम जाहीर करने की
देवद्रव्य नोंध : गुरुपूजन-एवं चारित्रोपकरण आदि गुरु संबंधी आय जिनमंदिर
जीर्णोद्धार-नवनिर्माण में जाती है । व्यवस्थापकों की सुविधा हेतु देवद्रव्य लिखा है । विवेकपूर्वक इस्तेमाल करें ।
__२७ - पुजारी के वेतन के बारे में .. प्रभुपूजा की प्रभु को कोई जरूरत नहीं है । जिनपूजा करना, यह श्रावकों का स्वयं का कर्त्तव्य है । पुजारी हम हमारी स्वयं की सुविधा एवं सहायता हेतु ही रखते हैं । अतः पुजारी को पगार (वेतन) आदि श्रावकों को स्वयं को ही देना चाहिए । यदि स्वयं न दे सको तो 'साधारण खाते में से या जिनमंदिर साधारण खाते में से' देना चाहिए । लेकिन देवद्रव्य में से पुजारी को पगारादि नहीं दे सकते ।
नोंध : पुजारी को पगार आदि देने हेतु बारहों मास की बारह बोलियाँ बुलवाकर आय अर्जित कर सकते हैं । गुरुपूजन आदि का द्रव्य-गुरुद्रव्य :
धर्मसंग्रह-द्रव्यसप्ततिका आदि ग्रंथों के अनुसार गुरुद्रव्य दो प्रकार का है ।
१ - भोगार्ह गुर द्रव्य-गुरु के भोग-उपभोग में आ सके ऐसे द्रव्य उन्हें बहोराना, जैसे आहार, पानी, वस्त्र, पात्र, कंबल आदि ।
२ - पूजार्ह गुरुद्रव्य-गुरु की अंगपूजा, अग्रपूजा रूप में जो सुवर्णादि द्रव्य अर्पण किया जाता है, जैसे सुवर्ण मुद्रा रख गुरुपूजन करना, रुपये-सिक्के चढाना आदि ।
भोगार्ह गुरुद्रव्य का उपयोग गुरु स्वयं कर सकते हैं ।
पूजार्ह गुरुद्रव्य उनके उपयोग में नहीं आ सकता, अतः एव द्रव्यसप्ततिका के पाठ अनुसार उसे गुरु से भी ऊंचे स्थान में याने जिनमंदिर के जीर्णोद्धार-नवनिर्माण में ले जाया जाता है । याद रहे कि द्रव्यसप्ततिका में गुरुद्रव्य से ऊपर का खाता देवद्रव्य का ही है । | २२
लधर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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