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उद्यापन-उजमणे का उद्घाटन करने की बोली में से दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र संबंधी उपकरण लाए जा सकते हैं । उपयोग :
जिनमंदिर-उपयोगी चीजें हों वे जिनभक्ति के कार्य में इस्तेमाल करें ।
पू. साधु-साध्वीजी के उपयोग में आसकनेवाले उपकरण उनकी भक्ति हेतु उन्हें बहोराए जा सकते हैं।
धार्मिक किताबें आदि हों तो वे पू. साधु-साध्वीजी को या जरूरत वाले श्रावक-श्राविका को दें । ज्ञानभंडार में भी रख सकते हैं।
पूजा के वस्त्र, सामायिक के उपकरण भी जरूरतवाले श्रावक-श्राविका को दें ।
चंद्रवा-पूंठिया (पीछवाई) निर्मित की हो तो उसका उपयोग जिनमंदिर-उपाश्रय में कर सकते हैं ।
गुरु भगवंतों के पीछे पूज्य देव-गुरु की आकृतियाँ न हो ऐसी ही चंद्रवा-पूंठियों की जोड़ी भरवाएँ ।
उद्यापन कराने वाले व्यक्ति या परिवार स्वयं उद्यापन में रखी चीजें इस्तेमाल नहीं कर सकते । या तो संघ को सौंपना चाहिए या सुयोग्य स्थानों में भेंट करना चाहिए ।
स्वयं ने भराया (निर्मित किया-कराया) चंद्रवा आदि उद्यापन में रखा हो तो फिर स्वयं के घर में नहीं रख सकते । उसे सुयोग्य स्थान में भेज देना चाहिए । २६ - आचार्य आदि पद प्रदान प्रसंग पर बुलवाई जाती बोलियाँ
किस खाते में ? १ - आसन बहोराने की
देवद्रव्य २ - स्थापनाचार्य बहोराने की ३ - मंत्रपट-मंत्राक्षर पोथी बहोराने की
ज्ञानद्रव्य ४ - नवकार मालिका (माला) बहोराने की | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
बोली
देवद्रव्य
ज्ञानद्रव्य
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