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________________ २० - ब्याज आदि की आय जिस खाते की राशि पर ब्याज प्राप्त हुआ हो अथवा भेंट आदि द्वारा वृद्धि हुई, वह राशि उसी खाते में खर्चनी चाहिए । यदि जरूरत से ज्यादा राशि हो तो अन्य स्थलों पर उसी खाते में खर्च हेतु भक्ति से भेज देना, यह जैनशासन की मर्यादा है। २१ - टैक्स (कर) आदि खर्चा जिस खाते की आय पर टैक्स (कर), ऑक्ट्रोय आदि सरकारी खर्च हो उसे उस उस खाते में से दे सकते हैं । २२ - पू. साधु-साध्वीजी के कालधर्म के बाद शरीर के अग्निसंस्कार-अंतिम यात्रा निमित्तक बोलियाँ पू. साधु-साध्वीजी के कालधर्म के पश्चात् अंतिमयात्रा-अग्निसंस्कार निमित्तक सभी बोलियों का द्रव्य : १ - जिनमंदिर के जीर्णोद्धार एवं नवनिर्माण में, २ - गुरुभगवंतों की प्रतिमा, पादुका एवं गुरुमंदिर निर्माण एवं जीर्णोद्धार आदि में, ३ - गुरुभगवंत के संयमी जीवन की अनुमोदना हेतु जिनभक्ति महोत्सव में (स्वामिवात्सल्य-प्रभावना बिना) इस्तेमाल किया जाता है । जैन संगीतकार एवं जैन विधिकार आदि को यह राशि नहीं दे सकते । किसी भी संयोग में यह राशि जीवदया में नहीं ले जा सकते । जीवदया हेतु इस मौके पर अलग से टीप (चंदा) कर राशि इकट्ठी कर सकते हैं । २३ - जिनमक्ति हेतु अष्टप्रकारी पूजा की सामग्री संघ को समर्पित करने की बोलियाँ (केशर-चंदन खाता) श्री जिनभक्ति के लिए जो अष्टप्रकारी पूजा की सामग्री इस्तेमाल की जाती है, उस सामग्री का लाभ लेने हेतु प्रतिवर्ष जो बोलियाँ बुलवाई जाती हैं, उसकी विगत - | १८ धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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