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________________ १८ - अनुकंपा हर एक दीन-दुःखी, निःसहाय, वृद्ध, अनाथ, अपंग आत्माओं को अन्न पानी, वस्त्र, औषधि आदि उपलब्ध कराकर द्रव्यदुःख टालने, परंपरा से भावदुःख टालने का प्रयत्न याने अनुकंपा । इस हेतु प्राप्त द्रव्य उपरोक्त कार्य में लगाना चाहिए । यह सामान्य कक्षा का द्रव्य है । अतः ऊपर के सातों क्षेत्रों में या किसी भी धार्मिक क्षेत्र में इसका उपयोग नहीं हो सकता । इसी तरह सातों क्षेत्रों का द्रव्य भी अनुकंपा क्षेत्र में नहीं लगाया जा सकता । खास आवश्यकता पड़ने पर अनुकंपा का द्रव्य जीवदया में लगा सकने की इजाजत है । हिंसा को प्रोत्साहित करने वाले अस्पतालों आदि में यह द्रव्य नहीं लगा सकते । यह द्रव्य रोककर न रखें । तुरंत व्यय कर दें । अन्यथा अंतराय लगती है । १९ - जीवदया जीवदया की टीप (चंदा), जीवदया के भंडार की आय, जीवदया का लगान आदि आय इस खाते में जमा करनी चाहिए । उपयोग : * इस खाते का द्रव्य मनुष्य को छोड़ सभी प्रत्येक तिर्यंच पशु-पक्षी - जानवर की द्रव्यदया के द्वारा परंपरा से भावदया के कार्य में, अन्न, पानी, औषधि आदि साधनों द्वारा उनका दुःख दूर करने हेतु शास्त्रीय मर्यादा अनुसार इस्तेमाल कर सकते हैं । जीवदया संबंधी सभी कार्य में व्यय कर सकते हैं । * यह सामान्य कोटि का द्रव्य है, अतः ऊपर के सातों क्षेत्र आदि किसी भी धार्मिक क्षेत्र में एवं अनुकंपा क्षेत्र में भी इस द्रव्य का विनियोजन नहीं हो सकता । जीवदया की राशि जीवदया में ही इस्तेमाल करनी चाहिए । * कुत्तों को रोटी, पक्षियों को अनाज आदि विशेष हेतु से आया द्रव्य उसी उद्देश्य में लगाना चाहिए । यह द्रव्य रोककर न रखें । तुरंत व्यय कर दें । अन्यथा अंतराय लगती है । धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? Jain Education International For Personal & Private Use Only १७ www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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