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धार्मिक प्राचीन आगमशास्त्र लिखाने या छपाने हेतु तथा उनकी सुरक्षा हेतु जरूरी चीजें लाने के लिए व्यय कर सकते हैं ।
* ज्ञानभंडार में पुस्तकों को रखने हेतु जरूरत हो तो कपाट (अलमारी) भी खरीद सकते हैं । उस अलमारी पर 'ज्ञानद्रव्य में से खरीदी हुई अलमारी' ऐसा स्पष्ट लिखना चाहिए ।
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ज्ञानभंडार - ज्ञानमंदिर श्रावकों को स्वद्रव्य से बनाने चाहिए । प्राचीन ज्ञान की सुरक्षा हेतु जरूरत पड़ने पर ज्ञानद्रव्य से भी बना सकते हैं । पर ज्ञानद्रव्य से बने ज्ञानमंदिर में साधु-साध्वी एवं श्रावक-श्राविका निवास नहीं कर सकते, उसमें शयन-संथारा भी नहीं कर सकते एवं साधु-साध्वीजी उसमें गौचरी (आहार- पानी) भी नहीं कर सकते ।
ज्ञानद्रव्य से खरीदे कपाट में सिर्फ ज्ञान संबंधी किताबें एवं सामग्री ही रखी जा सकती है । उसमें साधु-साध्वीजी का सामान (उपधि) एवं श्रावकश्राविकाओं के योग्य सामायिक पौषध के उपकरण एवं उपाश्रय की सामग्री नहीं रख सकते ।
ज्ञानभंडार सम्हालते जैनेतर ग्रंथपाल को वेतन - मानदेय दे सकते हैं ।
* ज्ञानद्रव्य में से धार्मिक पाठशाला के विद्यार्थी हेतु पंचप्रतिक्रमणादि धार्मिक किताबें नहीं खरीद सकते। ऐसी पाठशाला के जैन - जैनेतर किसी भी शिक्षकादि का वेतन भी नहीं दे सकते । संक्षेप में कहना हो तो
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: श्रावकों की पाठशाला संबंधी कोई भी खर्चा ज्ञानद्रव्य में से नहीं कर
सकते ।
* ज्ञानद्रव्यं' का एवं ज्ञानभंडार - ज्ञानमंदिर का उपयोग स्कूल, कॉलेज, हॉस्टेल आदि व्यावहारिक शिक्षण के किसी भी कार्य में नहीं किया जा सकता ।
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* ज्ञानद्रव्य की किताबें श्रावक-श्राविका को भेंट नहीं दी जा सकती, वे उसकी मालिक भी नहीं कर सकते ।
* ज्ञानभंडार की किताबों का यदि श्रावक-श्राविका उपयोग करें तो उसका सुयोग्य नकरा (इस्तेमाल करने का शुल्क ) ज्ञान खाते में जमा करना चाहिए ।
धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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