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३- जिनागम क्षेत्र - ज्ञानद्रव्य ज्ञानभंडार की राशि, आगम या शास्त्रों की पूजा से उत्पन्न द्रव्य, वासक्षेप से ज्ञानपूजा की बोलियाँ, ज्ञान की अष्टप्रकारी पूजा की बोलियाँ, प्रतिक्रमण में सूत्रों को बोलने का लाभ लेने की बोलियाँ, संवत्सरी प्रतिक्रमण के दौरान सकल संघ को 'मिच्छा मि दुक्कडं' देने की बोली, कल्पसूत्र-बारसा सूत्र तथा और भी कोई सूत्र बहोराने आदि की बोलियाँ, शास्त्र पर जो रुपया-पैसा चढ़ाया जाता है, यह सब ज्ञानद्रव्य में गिना जाता है।
मुमुक्षु को दीक्षा के समय पुस्तक (पोथी), सापडा (किताबकुर्सी) एवं नवकारमालिका (माला) अर्पण करने की बोलियाँ, आचार्यादि पद प्रदान प्रसंग पर पूज्यों को मंत्रपट, नवकारमालिका (माला) अर्पण करने की बोलियाँ ज्ञानद्रव्य में जाती है । * ज्ञानद्रव्य में से छपे ग्रंथों एवं पुस्तकों की बिक्री की आय ज्ञानद्रव्य में ही जमा
करनी चाहिए । * पैंतालिस आगम या अन्य किसी भी धर्मग्रंथ का ही बरघोडा (शोभायात्रा) हो, एवं
उसमें भगवान नहीं हो तो ऐसे बरघोडे की तमाम बोलियाँ भी ज्ञानखाते में जमा करें, परंतु उस बरघोडे का खर्चा उस आय में से नहीं कर सकते । यह खर्चा
व्यक्तिगत या साधारण द्रव्य में से ही करना चाहिए । ज्ञानद्रव्य का उपयोग :
ज्ञानपंचमी के दिन ज्ञान के सन्मुख चढ़ाई जाती पोथी, कवर, पेन-पेन्सिल, घोडावज आदि सामग्री का उपयोग ज्ञानभंडार के लिए हो सकता है । पुस्तक एवं ज्ञान संबंधी साधनों का उपयोग पू. साधु-साध्वीजी कर सकते हैं । श्रावकश्राविकाएँ उसका उपयोग नहीं कर सकते । ज्ञानद्रव्य में से पू. साधु-साध्वीजीओं को पढाने हेतु जैनेतर पंडित को वेतन दे
सकते हैं। * पू. साधु-साध्वीजीओं को पढ़ने हेतु (अध्ययन के लिए) योग्य किताबें खरीद
सकते हैं। * सुयोग्य पू. गुरुभगवंत के मार्गदर्शन से ज्ञानभंडार हेतु धार्मिक-साहित्यिक
किताबें खरीद सकते हैं ।
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धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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