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________________ ४- साधु क्षेत्र : ५ साध्वी क्षेत्र : शासन की आराधना, प्रभावना, रक्षा और भव्य जीवों के हृदय में शासन की स्थापना; यह सब जिम्मेदारी प्रभु महावीर ने स्वयं अपने हाथों से श्रमण-श्रमणी भगवंतों के वृषभस्कंधों पर रखी है । अतः श्रमण-श्रमणी भगवंतो की भक्ति करने से सर्वाङ्गीण शासन की भक्ति का भी लाभ मिलता है । श्री सात क्षेत्र परिचय अपना समस्त जीवन शासन के चरणों में समर्पित करने वाले श्रमण-श्रमणी भगवंतों को निर्दोष गोचरी-पानी-वस्त्र- पात्र - औषध-वस्ती (उपाश्रय-मकान) आदि का दान करने से हमारा तन-मन-धन और जीवन सफल होता है । अपने परिवार के हर सदस्य को श्रमण जीवन की राह दिखाना, उस राह पर चलने के लिए तैयार आत्मा को सहर्ष अनुमति देना और महोत्सव सहित उसे चारित्र राह तक पहुंचाना श्रमण-श्रमणी क्षेत्र की सबसे बडी भक्ति है । यह बात कभी न भूलें । श्रमण भगवंतों की संयम मर्यादा का भी हमें पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है । गीतार्थ सद्गुरु के चरणों में बैठकर वह ज्ञान पाना चाहिए । तत्पश्चात् साध्वाचार के पालन में उनके सहायक बनना हमारा फर्ज है । श्रमण भगवंतों की भक्ति उनके लिए नहीं, अपितु हमारे आत्मकल्याण के हेतु से ही करनी है । भक्ति करके हम उन पर उपकार नहीं करते । वे ही हमारी भक्ति को स्वीकार कर हम पर उपकार करते हैं । हमारे संघ में श्रमण-श्रमणी भगवंतों को चातुर्मास, नवपद ओली, पर्युषणा, पोषदसम, वर्षीतप पारना, प्रतिष्ठा सालगिरह आदि निमित्त पाकर आमंत्रित करना चाहिए । उनकी निश्रा पाकर पर्व की आराधनाएं करनी चाहिए । हररोज बहुमानपूर्वक उन्हें वंदन और कार्यपृच्छा करनी चाहिए । I Jain Education International XV For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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