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________________ 3- जिन-आगम क्षेत्र : अपेक्षा से सोचें तो जिन-आगम यह सात क्षेत्रों में केन्द्रस्थान पर है । जिनबिंब और जिनमंदिर क्षेत्र की पहचान कराने वाला और उसकी भक्ति के प्रकार और प्रभाव को बताने वाला जिन-आगम है और साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका क्षेत्र की पहचान कराकर उनकी भक्ति के प्रकार- प्रभाव को दर्शाने वाला भी जिनागम ही है । श्री सात क्षेत्र परिचय जिनागम के आधार से ही मूर्ति-मंदिर का निर्माण होता है और जिनागम को आधार बनाकर ही साधु, साध्वी, श्रावक या श्राविका जी सकते हैं। ऐसे अनेक दृष्टिकोण से सोचेंगे तो आपको भी समझ में आएगा कि श्रुत के आधार बिना जिनशासन का कोई अंग संभव नहीं हो सकता, प्राणवान नहीं बन सकता । श्रुत की, श्रुतज्ञानी की व श्रुत के संसाधनों की उपेक्षा या अनादर यह समग्र शासन की उपेक्षा और अनादर है । जिनागम शासन का अमूल्य धन है । आज समस्त भारत में हर संघ में शायद यह जिनागम क्षेत्र सबसे ज्यादा उपेक्षित है । जिनागम का महत्त्व समझकर हमें आज से ही जिनागम क्षेत्र की संकल्पबद्ध होकर भक्ति-सुरक्षा करनी चाहिए । हमारे श्री संघ में ज्ञानभंडार नहीं है तो बनाना अनिवार्य है। बिना जिनमंदिर कभी नहीं चलता, वैसे ही बिना ज्ञानभंडार भी चलता नहीं है। ज्ञानभंडार है, या नया बनाकर उसकी सार-संभाल नियमित रूप से करनी है । द्वादशांगी को अनुसरनेवाले अप्राप्य ग्रंथो का पुनर्मुद्रण और हस्तलिखित ग्रंथों को मुद्रित कराना चाहिए। 1 समृद्ध ज्ञानभंडार बनाकर श्री संघ को जानकारी और सब को पढ़ने की प्रेरणा करें। पाठशाला में भी छोटे-बड़े सभी सदस्यों को पढ़ने के लिए धार्मिक शिक्षक की व्यवस्था करें । ज्ञानपंचमी के दिन पुनः ज्ञानभंडार की सार-संभाल विशेषरूप से अपने हाथो से करें । संघ के जो सदस्य धार्मिक अभ्यास में आगे बढ़ें उनको प्रोत्साहन के रूप में बहुमान करके पारितोषिक दें । गुरु भगवंत के सानिध्य में समूह सामायिक करवा कर ज्ञानसत्रों का भी सुयोग्य आयोजन करें । Jain Education International XIV For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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