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________________ करो तो उन सबके लिए पर्याप्त हो सके इतना देवद्रव्य भी नहीं है। परंतु देवद्रव्य में से श्रावकों के लिए पूजा की व्यवस्था करना और श्रावकों को देवद्रव्य में से प्राप्त सामग्री द्वारा पूजा करनेवाला बना देना यह तो उनके उद्धार का नहीं परंतु उनको डुबा देने का कार्य है। पूजा स्वद्रव्य से ही करनी चाहिए : जिनपूजा कायिक, वाचिक और मानसिक - तीन प्रकार की कही गई है। जिनपूजा हेतु आवश्यक सामग्री स्वयं इकट्ठी करना वह कायिक, देशान्तरादि से उस सामग्री को मंगाना वह वाचिक और नंदनवन के पुष्प आदि जो भी सामग्री प्राप्त न की जा सके उसकी कल्पना द्वारा उससे पूजा करना वह मानसिक ! दूसरों की सामग्री से पूजा करनेवाले इन तीन में से किस प्रकार की पूजा कर सकते हैं? शास्त्रों में तो गृह मंदिर में उत्पन्न देवद्रव्य से भी गृहमंदिर में पूजा करने का निषेध किया है। गृह मंदिर में उत्पन्न देवद्रव्य द्वारा संघ के जिनमंदिर में पूजा करने में भी दोष कहा गया है। और स्वद्रव्य से ही जिनपूजा करनी चाहिए, ऐसा विधान किया गया है। तीर्थयात्रा को जाते समय किसी ने धर्मकृत्य में उपयोग करने के लिए कोई द्रव्य दिया हो तो उस द्रव्य को अपने द्रव्य के साथ मिलाकर, पूजा आदि करने का भी शास्त्रों ने निषेध किया है और कहा है कि 'सर्वप्रथम देवपूजा और धर्मकृत्य स्वद्रव्य से ही करना चाहिए और बाद में ही अन्य ने जो द्रव्य दिया हो उसे सब की साक्षी में, अर्थात् 'यह अमुक के द्रव्य से पूजा करता हूँ'- ऐसा कहकर धर्मकृत्य करने चाहिए। सामुदायिक, सामूहिक धर्मकार्य करने हों, उसमें जिसका जितना हिस्सा हो, यदि वह सबके समक्ष घोषित न करें, तो पुण्य का नाश होता है और चोरी आदि का दोष लगता है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। यदि शास्त्रों में कथित इन सभी बातों पर विचार किया जाय तो सबको ये सभी बातें समझायी जा सकती हैं, जिससे जिनभक्त ऐसे सर्वश्रावकों को मेहसूस होगा कि, हमें अपनी शक्ति के अनुसार गाँठ के द्रव्य से ही जिनपूजा करनी चाहिए। २४४ H ध र्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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