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________________ (१६) अहमदाबाद शाहपुर, मंगलपारेख का खांचा जैन उपाश्रय सुदी १४ धर्मश्रद्धालु सुश्रावक भाई अमीलाल रतिलाल भाई मु. वेरावल योग्य धर्मलाभ । आप का पत्र मिला । सब समाचार जाने । चौदह स्वप्न, पारणा, उपधान की माला का घी देवद्रव्य में ले जाना उचित है । शास्त्र तथा परम्परा के आधारों को साक्षात में शान्ति से समझाया जा सकता है । धर्म भावना में वृद्धि करना । C. धर्मविजय का धर्मलाभ (उक्त अभिप्राय पू. आ.म. श्री विजयप्रतापसूरीश्वरजी म. के पट्टधर पू.आ.म. श्री विजयधर्मसूरिजी महाराज का है ।) (१७) श्री जैन ज्ञानवर्धक शाला, परम पूज्य प्रातः स्मरणीय आचार्यदेव श्रीमद् विजय अमृतसूरीश्वरजी महाराज तथा पू. मुनिराज श्री पार्श्वविजयजी म. आदि ठाणा ६ की तरफ से - | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे देवद्रव्य भक्तिकारक सुश्रावक अमीलाल रतिलाल जैन योग्य धर्मलाभ । आप की और से पत्र मिला । पढ़कर समाचार जाने । उत्तर में लिखना है कि Jain Education International वेरावल श्रावण वद १० चवदह स्वप्न, पारणा, घोडिया तथा उपधान की माला की बोली का घी शास्त्रीय आधार से देवद्रव्य में ही ले जाना चाहिए । उसे साधारण खाते में ले जाना शास्त्र और परम्परा के अनुसार सर्वथा अनुचित है । इस संबंध में शास्त्रीय पाठ है । द. जिनेन्द्र विजय का धर्मलाभ (स्व. पू. आ. श्री जिनेन्द्रसूरिजी म. ) मु. लीम्बडी श्रा. सु. ७ For Personal & Private Use Only ११९ www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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