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________________ यद्यपि चवदह स्वप्न दर्शन प्रभु की बाल्य अवस्था के हैं परन्तु वे इसी भव में तीर्थंकर होनेवाले हैं इसलिए बाल्यवयरूप द्रव्य निक्षेप को भाव निक्षेप का मुख्य कारण मानकर शुभ कार्य करने हैं अर्थात् त्रिलोकाधिपति प्रभु भगवंत को उद्देश्य में लेकर ही स्वप्न आदि उतारे जाते हैं । जिस उद्देश्य को लेकर कार्य किया जाता हो उसी उद्देश्य में उसे खर्च करना उचित समझा जाता है । अतः त्रिभुवननायक प्रभु को लक्ष्य में रखकर स्वप्नादिक का घी बोला जाता है, इसलिए देवद्रव्य में ही वह आय लगाई जाय, यह उचित मालूम होता है । (पू.आ.भ.श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी म. श्री के पट्ट प्रभावक आचार्य महाराजश्री विजय दर्शनसूरीश्वरजी भ. श्रीजी का उक्त अभिप्राय है ।) (१५) भुज ता. १२-८-८४ धर्मप्रेमी सुश्रावक अमीलाल भाई, लि. भुवनतिलकसूरि का धर्मलाभ । पत्र मिला। जिनदेव के आश्रित जो घी बोला जाता है वह देवद्रव्य में ही जाना चाहिए, ऐसे शास्त्रीय पाठ हैं । 'देवद्रव्य-सिद्धि' पुस्तक पढ़ने की भलावन है । मुनि सम्मेलन में भी ठहराव हुआ था । देवाश्रित स्वप्न, पारणा या वरघोड़ा आदि में बोली जानेवाली बोलियों का द्रव्य तथा मालारोपण की आय-यह सब देवद्रव्य ही है। देवद्रव्य के सिवाय अन्यत्र कहीं भी किसी भी खाते में उसका उपयोग नहीं किया जा सकता । कुछ व्यक्ति इस सम्बन्ध में अलग मत रखते हैं, परन्तु वह अशास्त्रीय होने से अमान्य है । देवद्रव्य की वृद्धि करने की आज्ञा है परन्तु उसकी हानि करनेवाला महापापी और अनन्त संसारी होता है, ऐसा शास्त्रीय फरमान है । आज के सुविहित शास्त्र-वचन श्रद्धालु आचार्य महाराजाओं का यही सिद्धान्त और फरमान है क्योंकि वे भवभीरु हैं । धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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