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धर्मविजय आदि की तरफ से
सुश्रावक अमीलाल रतीलाल मु. वेरावल योग्य ।
(१८)
धर्मलाभपूर्वक लिखना है कि आप का पत्र मिला । समाचार विदित हुए । उत्तर में लिखना है कि स्वप्न, पारणा आदि की बोली के घी की आय शास्त्र दृष्टि से देवद्रव्य में जाती है । इसी तरह तीर्थमाला, उपधान की माला आदि के घी की आय भी देवद्रव्य में जाती है । इसके लिए शास्त्र में पाठ है । इसलिए देवद्रव्य में ही उसे ले जाना योग्य है । धर्म साधना में उद्यम करना ।
द. धर्मविजय का धर्मलाभ
(उक्त अभिप्राय पू.आ.म. श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा के शिष्य रत्न उपाध्यायजी धर्मविजयजी महाराज का है ।)
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(१९)
धर्मसागरगणि आदि ठाणा ३ की तरफ से -
सुश्रावक देव-गुरु-भक्तिकारक शाह अमीलाल रतिलाल वेरावल योग्य । धर्मलाभपूर्वक लिखना है कि आपका पत्र ता. ९-८-५४ का आज मिला । पढ़कर समाचार ज्ञात हुए ।
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नागपुर सिटी नं. २ इतवारी बाजार
जैन श्वे. उपाश्रय ता. ११-८-५४
(१) चवदह स्वप्न, पारणा, घोडिया तथा उपधान की माला आदि का घी शास्त्रीय रीति से तथा परम्परा और ज्ञानियों की आज्ञानुसार देवद्रव्य में ले जाया जाता है । इस सम्बन्ध में अहमदाबाद में सं. १९९० के सम्मेलन में समस्त श्वे. मूर्तिपूजक श्रमण संघ ने एकमत से निर्णय लिया है । वह मंगवाकर पढ़ लेना । इस निर्णय का छपा हुआ पट्टक सेठ आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी अहमदाबाद से मिल सकेगा । उसमें स्पष्ट है कि प्रभु जिनेश्वर देव के समक्ष या उनके निमित्त देरासर या उसके बाहर भक्ति के निमित्त जो बोलकी रकम आवे वह देवद्रव्य गिनी जाय ।
धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ?
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