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________________ शान्ताक्रुझ संघ की ओर से लिखा गया प्रथम पत्र 'सविनय निवेदन है कि यहाँ का संघ सं. १९९३ के साल तक स्वप्नों के घी की बोली ढाई रुपया प्रति मन से लेता रहा है तथा उसकी आय को देवद्रव्य के रूप में माना जाता था । परन्तु साधारण खाते की पूर्ति के लिये चालू वर्ष में एक प्रस्ताव किया कि स्वप्नों की बोली के घी के भाव रू. ढाई की जगह रु. पाँच किये जावें । जिसमें से पूर्व की भांति ढाई रुपया देवद्रव्य में और ढाई रुपये साधारण खर्च की पूर्ति के लिए साधारण खाते में जमा किये जावें । उक्त प्रस्ताव में शास्त्रीय दृष्टि से या परम्परा से उचित गिना जा सकता है क्या ? इस सम्बन्ध में आपका अभिप्राय बताने की कृपा करें जिससे वह परिवर्तन करने की आवश्यकता हो तो समय पर शीघ्रता से किया जा सके । श्री सूरत, भरुच, बडौदा, खम्भात, अहमदाबाद, महेसाणा, पाटण, चाणस्मा, भावनगर आदि अन्य नगरों में क्या प्रणालिका है ? ये नगर स्वप्नों की बोली के घी आय का किस प्रकार उपयोग करते हैं ? इस विषय में आपका अनुभव बतलाने की कृपा करें ।' श्रीसंघ के उक्त प्रस्तावानुसार श्री स्वप्नों की बोली के घी की आय श्री देवद्रव्य और साधारण खाते में ले जाई जाय तो श्रीसंघ दोषित होता है या नहीं ? इस विषय में आपका अभिप्राय बतलाने की कृपा करें । संघ-प्रमुख जमनादास मोरारजी (२) दुबारा इस विषय में श्रीसंघ द्वारा लिखा गया दूसरा पत्र 'सविनय निवेदन है कि यहाँ श्रीसंघ में स्वप्नों के घी की बोली का भाव ढाई रुपया गत वर्ष तक था । वह आमदनी देवद्रव्य की समझी जाती थी, परन्तु साधारण खर्च की पूर्ति के लिए श्रीसंघ ने विचार करके एक प्रस्ताव किया कि मूल २।।) रु. आवें ये सदा की भांति देवद्रव्य में ले जाये जावें और २।।) रु. जो अधिक आवें वे साधारण खाते की आमदनी में ले जाये जावें । उक्त ठहराव शास्त्र के आधार से ठीक है या नहीं, इस विषय में आपका अभिप्राय बतलाने की कृपा करियेगा । श्री सूरत, भरूच, बडौदा, १०४ धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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