________________
है और ज्ञानद्रव्य ऊपर के दो क्षेत्रों में काम आता है । साधारण द्रव्य सातों क्षेत्रों में काम आ सकता है, ऐसा सिद्धान्तों में कहा है । पायेणंतदेऊल जिणपडिमा कारिआओ जियेण । असमंजसवित्तीए न य सिद्धो दंसणलवोवि ।। इस जीव ने प्रायः करके अनंत मंदिर और जिन प्रतिमा बनवाई होगी, परंतु शास्त्रविधि के विपरीत होने से सम्यक्त्व का अंश भी प्राप्त नहीं हुआ ।
'न पूइओ होइ तेहिं जिन - नाहो ।' .. 'पूजाए मणसंति मण - संतिएण सुहवरे णाणं ।'
आज्ञारहित द्रव्यादि सामग्री से जिनेश्वर की पूजा की हो तो भी वास्तविक जिन पूजा नहीं की । पूजा का फल मन की शांति है और मन की शांति से उत्तरोत्तर शुभध्यान होता है।
उपसर्गाः क्षयं यान्ति छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः । मनः प्रसनतामेति पूज्यमाने जिनेश्वरे ।।
भावभक्ति से जिनेश्वर भगवान को पूजने पर आनेवाले उपसर्गो का नाश होता है, अंतराय कर्म भी टूट जाते हैं और मन की प्रसन्नता भी प्राप्त होती है ।
अतिचार : तथा देवद्रव्य, गुरुद्रव्य, साधारण द्रव्य भक्षित उपेक्षित प्रज्ञापराधे विणास्यो विणसंतो उवेख्यो छती शक्ति से सार संभाल न कीधी ।
भक्षण करनेवालों को अतिचार : देवद्रव्य-गुरुद्रव्य-साधारण द्रव्य भक्षण किया, भक्षण करनेवाले की उपेक्षा की, जानकारी न होने से देवद्रव्य का विनाश करे और विनाश करनेवाले की उपेक्षा करे और शक्ति होने पर भी सार संभाल नहीं की ।
द्रव्य सप्ततिका स्वोपज्ञ टीका :जिणदव्वऋणं जो धरेइ तस्य गेहम्मि जो जिमइ सट्टो । पावेण परिलिंपइ गेण्हंतो वि हु जइ भिक्खं ।।
जो जिन-द्रव्य का कर्जदार होता है, उसके घर श्रावक जीमता है वह पाप से लेपा जाता है, साधु भी आहार ग्रहण करता है तो वह भी पाप से लेपा जाता है ।
१००
धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org