SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तित्थयर-पवयण-सुअं आयरिअं गणहरं महिड्डिअं । आसायंतो बहुसो अणंत-संसारिओ होइ ।। जो तीर्थंकर, प्रवचन, श्रुतज्ञान, आचार्य, गणधर, महद्धिक की आशातना करता है, वह अनंत संसारी होता है । दारिद्द-कुलुप्पत्ती दारिद्दभावं च कुठ्ठरोगाइ । बहुजणधिक्कारं तह, अवण्णवायं च दोहग्गं ।। तण्हा छुहामि भूई घायण-बाहण-विचुण्णतीय । एआइ - असुह फलाई बीसीअइ भुंजमाणो सो ।। देवद्रव्यादि के भक्षणादि से दरिद्र कुल में उत्पत्ति, दरिद्रता, कोढ़ के रोगादि, बहुत लोगों का धिक्कार पात्र, अवर्णवाद, दुर्भाग्य, तृष्णा, भूख, घात, भार खेंचना, प्रहारादि अशुभ फलों को भोगता हुआ प्राणी अनंत दुःखी होता है । जइ इच्छह निव्वाणं अहवा लोए सुवित्थडं कित्तिं । ता जिणवरणिद्दिष्टुं विहिमग्गे आयरं कुणह ।। हे भव्य प्राणियों ! यदि तुम्हें निर्वाण पद की इच्छा हो अथवा लोक में हमेशा कीर्ति का विस्तार करना हो तो जिनेश्वर न्देव के बताए हुए विधिमार्ग का आदर करो । वीतराग ! सपयास्तवाज्ञापालनं परम् । आज्ञाराद्धा विराद्धा च शिवाय च भवाय च ।। (वीतराग-स्तोत्र) हे वीतराग ! आपकी पूजा के वनिस्पत आपकी आज्ञा का पालन करना श्रेष्ठ है । क्योंकि आपकी आज्ञा का अनुसरण मोक्ष प्राप्त कराता है और आज्ञा का उलंघन संसार में भ्रमण कराता है । उपदेश-सप्ततिका के पांचवें अधिकार में कहा है कि - ज्ञानद्रव्यं यतोऽकल्प्यं देव-द्रव्यवदुच्यते । साधारणमपि द्रव्यं कल्पते सङ्घ-सम्मतम् । एकैत्रेव स्थानके देववित्तं क्षेत्र - द्वय्यामेव तु ज्ञानरिक्थम् ।। सप्त क्षेत्र्यां स्थापनीयं तृतीयं श्रीसिद्धान्ते जैन एवं ब्रवीति । देवद्रव्य की तरह ज्ञानद्रव्य भी अकल्पनीय कहलाता है । साधारण द्रव्य भी संघ की सम्मति से सात क्षेत्रों में काम आता है, देवद्रव्य एक ही स्थान (क्षेत्र) में काम आता | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? ९९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy