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परिशिष्ट-६ देवद्रव्यादि सात क्षेत्रों की
व्यवस्था का अधिकारी कौन ? अहिगारी य गिहत्थो सुह-समणो वित्तम जुओ कुलजो । अखुद्धो धिई बलिओ, मइमं तह धम्मरागी य ।।५।। गुरु-पूआ-करण रई सुस्सूआइ गुण संगओ चेव । णायाऽहिगय-विहाणस्स धणियमाणा-पहाणो य ।।६।। पञ्चाशक ७ ।
द्रव्य सप्ततिका ग्रन्थ में पूज्य महोपाध्याय श्री लावण्य विजयजी गणिवर्य उक्त पंचाशक प्रकरण ग्रन्थ के अनुसार बताते हैं कि धर्म के कार्य करने में अनुकुल कुटुम्बवाला, ‘न्यायनीति से प्राप्त धनवाला', लोको से सन्माननीय, उत्तम कुल में जन्म लेने वाला, 'उदारदिल वाला', धैर्य से कार्य करनेवाला, बुद्धिमान, धर्म का रागी । गुरुओं की भक्ति करने की रति वाला, शुश्रूषादि बुद्धि के आठ गुणों को धारण करनेवाला और शास्त्राज्ञा पालक देवद्रव्यादि सात क्षेत्रों की व्यवस्था करने का अधिकारी होता है ।
विशिष्ट अधिकारी कौन ? मग्गाऽनुसारी पायं सम्मदिट्ठी तहेव अणुविरइ । एएऽहिगारिणो इह, विसेसओ धम्म - सत्थम्मि ।।७।। मार्गानुसारी, अविरति सम्यग्दृष्टि, देशविरतिवाला, धर्म शास्त्रों के अनुसार व्यवस्था करनेवाला ही प्रायः करके विशेष अधिकारी होता है । (धर्मसंग्रह से उद्धृत्) । जिन पवयण-वृद्धिकरं पभावगं नाणदंसणगुणाणं वड्ढन्तो । जिणदव्वं तित्थयरत्तं लहइ जीवो, रक्खंतो जिणदव्वं परित्त संसारिओ होई ।
(श्राद्धदिन-कृत्य गा. १४३-१४४) जैन शासन की वृद्धि करनेवाला और ज्ञान-दर्शनादि गुणों की प्रभावना करनेवाला देवद्रव्य की वृद्धि शास्त्र के अनुसार करता है, वह जीव तीर्थंकर पद को भी प्राप्त करता है और देवद्रव्यादि की रक्षा करनेवाला संसार को कम करता है ।
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धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ?
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