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समाधान-५० : शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान या अन्य किसी भी भगवान के अंग से उतरा हुआ वासक्षेप या अन्य कोई भी पदार्थ श्रावक-श्राविका अपने हाथों से या अन्यों के हाथों से, स्वयं के या अन्यों के मस्तक आदि अंग पर नहीं डाल सकते । इन चीजों का अन्य कोई उपयोग भी नहीं कर सकते । शास्त्र की मर्यादा के अनुसार भगवान का स्नात्र जल (न्हवणजल) आदरपूर्वक लेकर सिर पर लगाने की विधि है, जिसका वर्णन बृहच्छांति स्तोत्र में आता है ।
शंका- ५१ : स्त्री-पुरुषों का एक साथ सामायिक रखना क्या उचित है ? व्याख्यान सभाओं में तो स्त्री-पुरुष साथ में बैठते हैं, यह दृष्टांत समूह सामायिक में दे सकते हैं ?
समाधान-५१ : स्त्री- पुरुषों का एक साथ (संयुक्त) सामायिक रखना उचित नहीं लगता । ऐसी प्रथा चलाने से मर्यादा संबंधी कई प्रश्न खड़े होने की संभावना है । व्याख्यान सभाओं का दृष्टांत लेकर भी इस प्रथा का समर्थन करना उचित नहीं है ।
शंका- ५२ : हमारे गाँव में कुछ वर्ष पूर्व निर्मित शिखरबद्ध चतुर्मुख जिनालय में ध्वजा नहीं रखी है । आजुबाजु के बंगले वाले ऐतराज करते हैं कि ध्वजा का परसाया घर पर गिरे तो सर्वनाश होता है । अरिहंत एवं सिद्ध के वर्ण की प्रतीक ध्वजा हजारों मील (mile) से यदि दिखाई दे तो भी वंदनीय है - ऐसा सुना है । तो फिर उसके परसाये के बारे में उठाया गया सवाल भ्रम है या सच है ?
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समाधान-५२ : ध्वजा का परसाया घर पर गिरे तो दोषरूप है, यह कहना ठीक नहीं । विधान तो ऐसा है कि - दिन के दूसरे एवं तीसरे प्रहर में ध्वजा का परसाया गिरे तो दोषरूप है । ध्वजा का परसाया दिन के पहले एवं आखिरी प्रहर में बड़ा लम्बा गिरता है एवं दिन के दूसरे-तीसरे प्रहर में तो काफी नजदीक ही गिरता है । इसमें पहले एवं आखिरी प्रहर में घर पे परसाया गिरे तो दोष नहीं है । पर दूसरे-तीसरे प्रहर में यदि वह घर पे गिरे तो शास्त्र दृष्टि से दोष बनता है । घर पर परसाया गिरे इतने से ही वह दोषरूप नहीं बनता । यदि ऐसे ही होता तो फिर पहले चौथे ( आखिरी) प्रहर में परसाये के गिरने में भी दोष होता ! पर वैसे तो है नहीं ! क्योंकि वास्तविकता कुछ और है । 'दूसरेतीसरे प्रहर की ध्वजा का परसाया घर पर नहीं गिरना चाहिए' - इस विधान के पीछे आशय 'जिनमंदिर से गृहस्थ का घर इतना दूर होना चाहिए कि, जिससे गृहस्थ के गृह
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धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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