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वैराग्यपूर्वक ही होते हैं । फिर भी यहाँ आने के बाद किसी परिबल वश वे ऐसे साधनों का प्रयोग करने को ललचाते हैं । पर इन साधनों को कौन लाकर देता है ? साधु स्वयं बाजार में जाता नहीं । लोभी गृहस्थ वर्ग साधु भगवंतों की मर्यादाओं को तुड़वाकर उनसे स्वयं के स्वार्थ साधता है । ज्योतिष-मुहूर्त, मंत्र-तंत्र, तावीज, रक्षापोटली, यंत्र-मूर्तियाँ, दवा-दारू, वासक्षेप जैसी अनेक प्रकार की अकरणीय प्रवृत्तियाँ साधुओं से कराता है । इसके बदले में वे जो कहें वह ला लाकर देते हैं । इस प्रवृत्ति से ही साधु संस्था में सड़न पैदा हो जाती है । यदि हृदय की व्यथा से यह प्रश्न आपके मन में उठा हो तो आज से ही ऐसा निर्णय कर लेना चाहिए कि -
१ - किसी भी साधु के पास हम संसार के स्वार्थ की बात लेकर नहीं जाएंगे, २ - साधु को ऐसे कोई भी साधन हम लाकर नहीं देंगे, ३ - जो साधु ऐसे साधनों का प्रयोग करते हों, उन्हें हम प्रोत्साहन नहीं देंगे, ४ - ऐसे साधुओं का विरोध हम से न भी हो सके तो भी कम से कम उनके ___सहायक तो नहीं ही बनेंगे, ५ - ऐसे साधुओं को आधार मिले ऐसी कोई कार्यवाही हम नहीं करेंगे, ६ . हमारी शक्ति हो तो विवेकपूर्वक हम उन्हें रोकने का प्रयास करेंगे, ७ - किसी भी हालत में उनकी निंदा तो नहीं ही करेंगे, उनके संबंध में खबरें
छपवाकर बेइज्जती करने का काम भी नहीं ही करेंगे, ८ - अतिशय गंभीर मामला हो तो, गीतार्थ गुरु के मार्गदर्शन से सभी सुयोग्य
उपाय करेंगे। इतना भी यदि किया जाए, तो श्रावकों-गृहस्थों के कारण जो शीथिलता प्रारंभ होती है, वह रुक सकती है और श्रमण संघ की निंदा-अवहेलना के पाप को भी ब्रेक लग सकता है ।
शंका-५० : शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान के अंग से उतरा हुआ वासक्षेप लेकर श्रावक-श्राविका अपने हाथों से स्वयं के या अन्यों के सिर पर डालते हैं, क्या यह योग्य है ?
| धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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