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में हो रही प्रवृत्तियों की अशुद्धि के कारण मंदिरजी की आशातना न हो', यह बताना है।
दूसरे-तीसरे प्रहर में याने सूर्योदय के पश्चात् लगभग तीसरे घण्टे से लगा नौवे घण्टे तक के समय में सूर्य ऊपर चढ़ता होने से ध्वजा का परसाया मंदिर के बिल्कुल नजदीकी प्रदेश में ही गिरता है । अतः जिनमंदिर से घर इतना नजदीक हो, तो मंदिर की आशातना का दोष लगता है । इसलिए गृहस्थ को चाहिए कि मंदिर से अपना घर इतना नजदीक न बनाए ।
संक्षिप्त में कहें तो ध्वजा के परसाये की बात 'जिनमंदिर से घर कितनी दूरी पर होना चाहिए, कितना नजदीक नहीं होना चाहिए' यह मर्यादा बताने हेतु ही है । दूसरे-तीसरे प्रहर में मंदिर की ध्वजा का परसाया गिरे इतना नजदीक गृहस्थ का घर नहीं होना चाहिए । जिस घर पर दूसरे-तीसरे प्रहर में ध्वजा का परसाया गिरता न हो, उस घर पर पहले-चौथे प्रहर का परसाया गिरे तो कोई बाधा नहीं है । क्योंकि वह घर शास्त्र द्वारा निषिद्ध क्षेत्रमर्यादा में नहीं आता ।
अब, कोई व्यक्ति जिनमंदिर पर ध्वजा ही न लगाए, पर ध्वजा हो और उसका परसाया दूसरे-तीसरे प्रहर में गिरे इतने नजदीकी अंतर में अपना गृह बनाए, तो ध्वजा न होने के कारण ध्वजा का परसाया न गिरने पर भी उसे दोष लगता ही है । और ध्वजा होते हुए भी दूसरे-तीसरे प्रहर में ध्वजा का परसाया न गिरता हो इतना दूर यदि घर बनाया हो, वहाँ पहले-चौथे प्रहर का परसाया गिरता भी हो, तो भी उसे कोई दोष नहीं लगता।
लोगों को इस बाबत पूरा ज्ञान न होने से शंकाएँ पैठ गई हो ऐसा प्रतीत होता है ।
शंका-५३ : मंदिर में भगवान को चढ़ाए हुए पुष्प वगैरह दूसरे दिन उतार लिए जाते हैं, उन निर्माल्य पुष्पों का निकांस कैसे किया जाए ? उसे स्नात्रजल में स्नात्रजल की कुंडी में या नदी में विसर्जित कर सकते हैं क्या ?
समाधान-५३ : कुंथु आदि अत्यंत सूक्ष्म-त्रस जीव थंडी एवं सुगंध के कारण बहुत दफे पुष्पों का आश्रय लेते हैं । अतः निर्माल्य पुष्पों को स्नात्रजल, स्नात्रजल के भाजन में या नदी में विसर्जन करने पर उनकी हिंसा हो जाती है । अतः उन्हें किसी भी जल में या प्रवाह में नहीं पधरा सकते । उन्हें वहीं पधराना चाहिए, जहाँ किसी का पाँव न | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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